namit_tigga

चक्र- अ – सामान्य काल का तेईसवाँ इतवार

एज़ेकिएल 33:7-9; रोमियो 13:8-10; मत्ती 18:15-20

ब्रदर नमित तिग्गा (भोपाल धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में आदरणीय विश्वासी भाईयो एवं बहनो, इंसान होने के नाते हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम एक दूसरे का ख्याल करें और जब अपने भाई की बात हो, अगर वह कोई अपराध करता है या बुराई की राह पर चलने लगता है तो निश्चय ही हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। हमारा परम कर्त्तब्य बनता है कि हम उसे सही सलाह प्रदान करे। नहीं तो प्रभु ईश्वर हमसे भी काइन की तरह सवाल करेगा कि तुम्हारा भाई हाबिल कहाँ है? तुमने तुम्हारे भाई के साथ क्या किया, और हम उत्तर में कुछ नहीं कह पाएंगे। इसलिए भाई के साथ भाई जैसा व्यवहार करना जरुरी है! न कि शत्रु जैसा।

कहा जाता है कि दूसरों को सुधारना आसान काम है परन्तु अपने आप को सुधारना बड़ा मुश्किल काम है। साधारणतः हम दूसरों को सुधारने के लिए कई उपाय करते रहते हैं और जब बात खुद को सुधारने की आए तो हम नाराज हो जाते हैं। आज का सुसमाचार हमें भाई की सुधार के बारे में बताना चाहता है। प्रशासनिक नियम कानुन के तहत हम देखते हैं कि जब कोई किसी भी प्रकार का अपराध करे तो उसे कानुन के आधार पर जुर्माना, जेल की सजा, आजीवन कारावास या मृत्यु दण्ड दिया जाता है। घर परिवार में माता - पिता अपने बच्चों को प्यार से समझाने की कोशिश करते हैं, नहीं मानने पर गाली ग्लौज करते हैं, मारते - पीटते हैं या तो कुछ समय के लिए घर से बाहर निकाल देते हैं, या हार मानकर यों ही छोड़ देते हैं।

पवित्र बाईबल में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ ईश्वर ने अपने लोगों को धर्मियों या नबियों के द्वारा चेतावनी दी, पश्चताप कर वापस लौटने का मौका दिया, फिर भी नहीं सुधरने पर उन्हें उनके कर्मों के अनुसार दण्ड दिया। (विधि-विवरण 21:18-21) में मूसा के द्वारा इस्राएलियों को यह आदेश मिला, “यदि किसी का पुत्र हठी या उद्दण्डी हो, जो न अपने पिता और न अपनी माता की बात सुनता हो और न उनके समझाने पर उनकी मानता हो, तो उसके माता - पिता उसे नगर के नेताओं के पास ले जाकर कहे, हमारा यह पुत्र हठी और उद्दण्डी है। तब नगर के लोग उसे पत्थरों से मार डालें। इस प्रकार तुम अपने बीच से यह बुराई दूर कर दोगे। सब इस्राएली यह सुनकर भयभीत होंगे। संत पौलुस 1तिमत्ती 5:20 में कहते हैं, “जो पाप करते हैं उन्हें सब के सामने चेतावनी दो, जिससे दूसरे लोगों को भी पाप करने में डर लगे”।

आज के पहले पाठ में भी नबी एज़ेकिएल के द्वारा प्रभु ईश्वर इस्राएलियों को कुमार्ग छोड़ने की चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जो कोई कुमार्ग नहीं छोड़ेगा वह अपने पाप के कारण मर जाएगा।

मनुष्य स्वभाव से पाप की ओर झुका रहता है, लाख चेष्टा करके भी सुधरने में समय लगता है। यदि हर पाप के लिए मृत्यु दण्ड दिया जाए तो संसार में कौन बचा रह जाएगा। विधि-विवरण ग्रंथ में हमने देखा कि जो बुराई करे और सुधरने का नाम न ले उसे पत्थर से मार डालने की बात कही गई है ताकि समाज में ब्याप्त बुराई पर काबू पाया जा सके, परन्तु आज के सुसमाचार के माध्यम से प्रभु येसु उन्हें बड़े प्यार से बार-बार समझाने की सलाह देते हैं। वे चाहते हैं कि सब एक ही भेड़शाला, भेड़ के बाड़े के अन्दर या एक ही झुण्ड में रहें। वे नहीं चाहते हैं कि उनमें से कोई भटक जाए या बिखर जाए। प्रभु येसु प्रेम, दया, क्षमाशीलता, जीवनदान आदि पर अधिक जोर देते हैं। प्रभु येसु लोगों को सुधरने के लिए समय प्रदान करते हैं। संत लुकस के सुसमाचार 13:6-9 में हम पढ़ते हैं जहां दाखबारी में मालिक अंजीर के फल खोजने आते हैं परन्तु फल न मिलने पर उस पेड़ को काट फेंकने की सलाह देते हैं। लेकिन माली का प्रत्युत्तर होता है वह मालिक से विनती करता है, “मालिक ! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद दूँगा। यदि यह अगले वर्ष फल दे, तो अच्छा, नहीं तो इसे काट डालिएगा।” ईश्वर हमारे साथ भी ऐसा ही व्यवहार करता है। वह सुधरने के लिए भरपूर समय देता है। आज के पवित्र सुसमाचार प्रभु येसु यदि कोई गलती करे तो प्यार से अकेले में समझाने की बात करते हैं, न मानने पर दो - चार साथियों को लेकर समझाये, फिर भी न माने तो कलीसिया के अधिकारियों को बतावे, उनकी भी न सुने तो ईश्वर के हाथों स्वतंत्र छोड़ देने की सलाह देते हैं। और उनके लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं क्योंकि प्रभु कहते हैं, “यदि पृथ्वी पर तुम लोगों में दो व्यक्ति एकमत होकर कुछ भी मांगेंगे, तो वह उन्हें मेरे स्वर्गिक पिता की ओर से निश्चय ही मिलेगा; क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकटठे होते हैं, वहां मैं उनके बीच उपस्थित रहता हूँ।“ (मत्ती 18:19-20)

प्रभु येसु सामूहिक जीवन, सामूहिक प्रार्थना, भ्रातृप्रेम, भाई-चारे की भावना, एकता - सौहार्द आदि गुणों को बढ़ावा देना चाहते हैं।

तो आईये हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हम प्रत्येक जन को अपनी आशिष और कृपा प्रदान करें, कि हम अपने में ही सीमित न रहें बल्कि अपने भाई या पड़ोसी को भी बुराई की राह पर जाने से रोक सकें। वर्तमान परिवेश में ऐसा करना आसान काम नहीं है क्योंकि आधुनिक विकास की प्रगति के कारण सब लोग अपने आप में सीमित या व्यस्त होते जा रहे हैं। ईश्वर इस कार्य में हमारी मदद करे। आमेन