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चक्र- अ – वर्ष का बाइसवॉं इतवार

यिरमियाह 20:7–9; रोमियों12:1–2; मत्ती 16:21–27

ब्रदर रोशन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)


आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते है कि जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले। प्रभु येसु आज हमें भी आत्मत्याग करने हेतु आहवान करते हैं, क्योंकि आत्मत्याग के द्वारा ही हम उनका अनुसरण कर सकते हैं। आइए हम आत्मत्याग के अर्थ को समझें। आत्मत्याग का अर्थ होता है, स्वयं को त्यागना एवं ईश्वर को अपने जीवन में सर्वोपरि स्थान देना। दूसरे शब्दों में इसका अर्थ हो सकता है कि स्वयं की इच्छा को नहीं बल्कि ईश्वर की इच्छा को अपने जीवन में प्राथमिकता देना।

आत्मत्याग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमें संत पौलुस के द्वारा प्राप्त होता है। वह स्वयं को नहीं बल्कि प्रभु येसु को अपने जीवन में प्रथम स्थान देते हैं। इसलिए वे गलातियों के नाम पत्र 2:20 में कहते हैं कि, “मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित है।” एवं वहीं फिलिप्पियों के नाम पत्र 1:21 में वे कहते हैं, “मेरे लिए तो जीवन है मसीह और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति”। इन वचनों के द्वारा हमें संत पौलुस का मनोभाव ज्ञात होता है। वह प्रभु येसु की प्राप्ति को अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं। आत्मत्याग के मनोभाव के कारण ही वह स्वयं का त्याग करके समर्पित होकर येसु का प्रचार निर्भीक होकर करते हैं। आत्मत्याग के द्वारा वे इतनी लगन एवं बिना संकटों की परवाह किए येसु का प्रचार करते हैं। वे निरंतर ईश्वर के बारे में सोचते रहते हैं एवं उनको प्राप्त करने हेतु बहुत उत्सुक रहते हैं।

आत्मत्याग का अर्थ हम प्रभु येसु द्वारा दी गई सबसे बड़ी आज्ञा के माध्यम से भी समझ सकते हैं। प्रभु येसु सबसे बड़ी आज्ञा द्वारा हमें ईश्वर को एवं अपने पड़ोसी को प्रेम करने हेतु आहवान करते हैं। परंतु हम किस प्रकार ईश्वर को एवं अपने पड़ोसी को प्रेम कर सकते हैं। ईश्वर को एवं अपने पड़ोसी को येसु की शिक्षा के अनुसार प्रेम करना सरल नहीं है। जब तक हम स्वयं को नहीं त्यागेंगे तब तक हम ईश्वर को एवं अपने पड़ोसी को येसु की शिक्षा के अनुसार प्रेम नहीं कर सकते हैं। केवल आत्मत्याग के द्वारा ही हम अपने ईश्वर एवं अपने पड़ोसी को येसु की शिक्षा के अनुसार प्यार कर सकते हैं। आत्मत्याग ही हमें दूसरों को प्रेम करने हेतु मदद कर सकता है।

हम इस बात पर विचार करें कि हम किस प्रकार ईश्वर को प्यार कर सकते हैं। तो हम जान पायेंगे के ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम इस से व्यक्त होगा कि हम किस प्रकार अपने पड़ोसी को प्यार करते हैं। इस बात को समझाते हुए संत योहन अपने पहले पत्र 4:20 में कहते हैं, “यदि कोई यह कहता कि मैं ईश्वर से प्यार करता हूं और वह अपने भाई से बैर करता तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को जिसे वह देखता है प्यार नही करता, तो वह ईश्वर को जिसे उसने कभी देखा नहीं, प्यार नहीं कर सकता।” यह वाक्य हमें बताता है कि पड़ोसी को प्रेम करने से ही हम ईश्वर को प्रेम कर सकते हैं। केवल आत्मत्याग के द्वारा ही हम अपने पड़ोसी को प्यार कर सकते हैं। आत्मत्याग ही हमें स्वयं को त्यागने में मदद करता है एवं हमें ईश्वर की एवं अपने पड़ोसी के सेवा करने हेतु बल प्रदान करता है। केवल आत्मत्याग ही हमें दूसरों की समस्याओं एवं दर्द को महसूस करके उनकी मदद करने हेतु आगे बड़ा सकता है। आत्मत्याग के द्वारा ही हम अपने दुःख व समस्याओं को नजरंदाज करके दूसरों के दुखों को बांट सकते हैं एवं दूसरों को अपने से अधिक महत्व दे सकते हैं।

आत्मत्याग हमें न केवल दूसरों की सेवा करने हेतु मदद करता है बल्कि यह हमें एक निस्वार्थ जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह हमें स्वयं से ज्यादा ईश्वर एवं अपने पड़ोसी का ध्यान रखने हेतु मदद करता है। क्योंकि स्वयं प्रभु येसु ने हमें पापों से बचाने हेतु क्रूस पर अपने आपको कुर्बान किया। उन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना हमें जीवन देने हेतु क्रूस की सजा स्वीकार की। आज यही शिक्षा प्रभु येसु हमें भी प्रदान करते हैं। आइए हम आत्मत्याग का मनोभाव अपने जीवन में अपना कर प्रभु येसु का एक सच्चा अनुयायी बनने का प्रयत्न करें। एवं अपने जीवन में स्वयं से अधिक महत्व दूसरों को देने हेतु तैयार रहें। आमेन।