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चक्र- ब – सामान्य काल का बीसवाँ रविवार

इसायाह 56:1,6-7; रोमियों 11:13-15, 29-32; मत्ती 15:21-28

- ब्रदर अजित ए. (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में प्रिय विश्वासियों!

दुनिया में हम देखते हैं कि लोगों के बीच बहुत सारे विभाजन हैं जैसे रंग-रूप, जाती-धर्म इत्यादि को लेकर। ये मनुष्यों द्वारा बनाया गये हैं और संसार में ये पहले से ही अंतर्निहीत हैं। इसलिए इन सब को बदल पाना हमारे बस की बात नहीं है। आज के जमाने में ऐसा है तो सोचें कि येसु के समय कैसा रहा होगा। क्योंकि येसु के समय भी यहूदी अपने आप को ईश्वर के द्वारा चुनी हुई प्रजा समझते थे और दूसरों को जैसे कनानियों और अन्य जातियों को उनसे दूर रखते थे। उनकी सोच यह थी कि यदि वे अन्य लोगों के साथ मिल-जुल कर रहें तो वे उन्हें दूसरे देवताओं की पूजा करने के लिए एवं अनैतिक जीवन जीने के लिए प्रभावित करेंगे। आज के सुसमाचार में एक कनानी स्त्री अपनी बेटी की चंगाई के लिए प्रभु येसु के पीछे चिल्लाती रहती है और कहती है, “हे प्रभु दाऊद के पुत्र मुझ पर दया कीजिए”, लेकिन हम देखते हैं कि येसु ने उसे उत्तर नहीं दिया। थोड़ी देर बाद शिष्यों के अनुरोध पर प्रभु येसु कहते हैं “मैं केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ।” प्रिय विश्वासियों हमारे दिल में यह प्रश्न उठता है कि क्यों प्रभु येसु ने ऐसा कहा होगा। क्योंकि हम पूरे सुसमाचार में देखते हैं कि येसु सभी लोगों को सारी बीमारियों से छुटकारा देते हैं, यहाँ तक कि वे बिना पूछे ही कई लोगों को चंगाई प्रदान करते है। लेकिन आज के सुसमाचार में बार-बार बोलने के बावजूद भी येसु उनकी नहीं सुनते हैं। मैं सोचता हूँ कि प्रभु येसु इस घटना के द्वारा उनके साथियों और हमको यह सिखाना चाहते हैं कि ईश्वर सब लोगों के लिए है न सिर्फ़ यहूदियों के लिए या ईसाईयों के लिए क्योंकि जो भी ईश्वर पर विश्वास रखते हुए ऊँचे स्वर से बुलाता है, ईश्वर उसकी सुध लेता है। हम देखते हैं योहन 3:16 में “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमें विश्वास करता, उसका सर्वनाश न हो बल्कि अनंत जीवन प्राप्त करे।” जैसे हम प्रेरित चरित 10:34-35 में पेत्रुस को कहते हुए देखते हैं “मैं अब अच्छी तरह समझ गया हूँ कि ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। मनुष्य किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, यदि ईश्वर पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करता है, तो वह ईश्वर का कृपापात्र बन जाता है।”

प्रिय विश्वासियों आज के तीनों पाठ हमें इस वचन पर दृढ़ विश्वास करने के लिए बुलाते हैं कि जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा उसे मुक्ति प्राप्त होगी। आज के पहले पाठ में नबी इसायाह कहते हैं कि जो प्रभु के अनुयायी बनते, उसकी सेवा करते, उनका नाम लेते रहते, और उनके भक्त बन जाते हैं उन लोगों को प्रभु पवित्र पर्वत पर ले जायेगा और अपने प्रार्थनागृह में आनंद प्रदान करेगा। इसके द्वारा नबी बताते हैं कि प्रभु पक्षपात नहीं करता है बल्कि जो कोई उन में विश्वास करता है और उनके नाम को पुकारता है वह उन्हें बचाता है। आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस जो यहूदी है दृढ़ता से कहता है “मैं गैर-यहूदियों में प्रचार करने के लिए भेजा गया हूँ और इस धर्म सेवा पर भी गर्व करता हूँ। क्योंकि ईश्वर सभों पर दया दिखाना चाहता है।” हम इसके विषय में प्रेरित चरित 22:21 में पौलुस को कहते हुए देखते हैं “प्रभु ने मुझ से कहा, जाओ मैं तुम्हें गैर यहूदियों के पास दूर दूर भेजूँगा”। इस वचन पर विश्वास करते हुए पौलुस ने भी ईश्वर का काम करने के लिए अपने आप को तैयार किया और विश्वास किया कि ईश्वर सभों पर दया दिखाना चाहता है।

प्रिय विश्वासियों, हम भी यह विश्वास करें और समझ लें कि जो भी विश्वास के साथ ईश्वर और प्रभु येसु के नाम को लेकर पुकारते हैं उनकी प्रार्थना सुनी जाती है। यह सिर्फ ख्रीस्तीयों के लिए नही बल्कि जो भी प्रभु येसु पर विश्वास करते हुए उनको प्रभु मानते हैं, वे चंगाई प्राप्त करते हैं। हम देखते हैं कि बहुत से लोग चाहे ख्रीस्तीय हो या अन्य विश्वासी करिश्माई प्रार्थना में भाग लेकर ईश्वर से बल एवं चंगाई प्राप्त करते हैं। लेकिन कभी-कभी हममें से बहुत लोग निराश हो जाते हैं कि हमारी प्रार्थना सुनी नहीं जाती है। ऐसे समय में हमें इस कनानी स्त्री के जैसे साहस के साथ ईश्वर को बार-बार पुकारते रहना है क्योंकि ईश्वर को बार-बार पुकारते रहने से हम अपने आप में शक्तिहीनता को स्वीकार करते हैं और ईश्वर की आशिष एवं कृपा पर विश्वास करते हैं। अतः जब हम बार-बार प्रभु को पुकारते हैं तो उनके प्रति हमारा विश्वास बढ़ता जाता है। इसलिए आईए हम ईश्वर पर दृढ़ विश्वास करें और उनके नाम को पुकारते रहें। आमेन।।