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चक्र- अ – सामान्य काल का सत्रहवाँ इतवार

1 राजाओं 3:5,7-12, रोमियो 8:28-30 मत्ती 13:44-50

ब्रदर माईकिल डिज़ूसा (आई.वी.डी.)


प्रिय भाईयों और बेहनों राजा सुलेमान ईश्वर से इतना प्रेम करता था कि वह प्रभु के मार्ग पर चलता और होम बलियाँ चढता था। इन सभी बातों की वजह से ईश्वर ने राजा सुलेमान पर प्रसन्न हो कर उससे कहा कि तुम कुछ भी माँगो, मैं तुम्हें दे दूँगा। परंन्तु राजा सूलेमान अपने लिए और अपने परिवार के लिए संपत्ति और धन नहीं मागता है। वह प्रभु से विवके माँगता है ताकि वह सही तरिके से ईश्वर की प्रजा का शासन कर सके। इन बातों से हम समझ सकते हैं कि वह ईश्वर की प्रजा कि सेवा ईश्वर की इच्छा के अनुसार करना चाहता और ईश्वर को समझना तथा प्रभु के सानिघ्य में रहना चाहता था। सूसमचार में हम देखते हैं कि स्वर्गराज्य खेत में छिप हुए खजाने कि सदृश्य हैं जिसे कोई मनुश्य पाता है (मत्ती 13:44)। कई सारे लोग जीवन में बिना ढूंडते ही अचानक आध्यात्मिक खजाना प्राप्त करते हैं। खेत में काम करते समय या उस खेत में से गुजरते समय उसे अचानक उस खजाने का पता चलता हैं।

बहूत सारे लोग अपने जीवन में बिना ढ़ूँढ़ते ही येसु को पाते हैं, जैसे योहन 4 में हमें देखते हैं कि एक समारी स्त्री रोज की तरह कुए के पास पानी भरने आती है और वहाँ उसकी मुलाकात प्रभु येसु से होती है और उसका जीवन पूरी तरह बदल जाता है। योहन 1:45-51 हम पढ़ते हैं कि इस प्रकार नाथनायल की मुलाकात प्रभु से होती है और वह प्रभु का शिष्य बन जाता है। प्रेरित-चरित अध्याय 9:1-19 में हम देखते हैं की प्रभु येसु साउल को दर्शन दे कर उसे अपना शिष्य बनाता है। इसी प्रकार मेरी और आपकी भी मुलाकात येसु से अचानक हो सकती है।

खेत में खजाना पाने वाले व्यक्ति ने कुछ खोजा नहीं था लेकिन दूसरे दृष्टान्त में हम देखते हैं कि एक व्यापारी खोजता है और उस के फल-स्वरुप उसे एक उत्तम मोती प्राप्त होता है। लूकस रचीत सुसमाचार 19:1-10 मे हमें पता चलता है कि ज़केयुस खोजने तथा तकलीफ उठ़ाने से ही येसु को पाता है। मारकुस के सूसमाचार 10:46-52 में हम यह देखते है कि एक अंधा भिखारी दूसरों को अपनी इच्छा को प्रकट करते हुए येसु को पाते हैं। इस प्रकार हममें से कई लोगों को येसु को पाने के लिए खोजना पढ़ता तथा तकलीफ उठ़ाना पड़ता है। अब सवाल यह उठता है कि येसु से मुलाकात होने के बाद क्या होता है? क्या हमें लगता है कि हमें खजाना मिल गया है और हमारी खोज सफल रही है। अगर सफल रही है तो हमें अपनी खोज समाप्त कर येसु से हमारे संबन्ध को बनाए रखना चाहिए। इस दृष्टाने में संसार के अंन्त में क्या होगा, इसका भी विवरण है। धर्मी और अधर्मी से अलग किये जायेंगे। धर्मी को पुरस्कार प्राप्त होगा और अधर्मी को दण्ड मिलेगा। इस द्रष्टान्त के व्दारा प्रभु हमें यह सिखाना चाहते हैं कि कभी कभी हमें बिना ढ़ूँढ़ते ही येसु मिल जाते हैं। और कभी ढ़ूढ़ने और परिश्रम करने के बाद ही येसु मिलते हैं। लेकिन येसु से मुलाकात के बाद येसु की शिक्षा पर आधारित धार्मिक जीवन बिताने से ही हमें स्वर्ग का पुरस्कार प्राप्त हो सकता है। येसु के मार्ग से भटक जाने से हमें दण्ड ही मिलेगा। इस प्रकार आज का सुसमाचार हमें यह शिक्षा देता है कि हम येसु को ढ़ूँढ़ें, उन्हें खजाना मानें तथा उनके साथ एक अनोखा संबंन्ध जोड़ कर उनकी इच्छा के अनुसार जीवन बिता कर स्वर्ग के पुरस्कार के योग्य बन जायें।