amit_bhuriya

चक्र- अ – सामान्य काल का पन्द्रहवाँ रविवार

इसायाह 55:10-11; रोमियों 8:18-23; मत्ती 13-1-23

ब्रदर अमित भूरिया, (झाबुआ धर्मप्रान्त)


प्रभु का वचन सदा प्रभावशाली और रूपांतरणीय है। अपने शब्द मात्र से प्रभु ईश्वर ने सारी सृष्टि की रचना की ईश्वर ने कहा "प्रकाश हो जाए और प्रकाश हो गया इस तरह आसमान, समुद्र, पृथ्वी, पेड़ पौधे, पशु पक्षी, इत्यादि की सृष्टि हुई।" पुराने विधान में ऐसे कई वाक्यांश है जहां प्रभु ईश्वर नबीयों के माध्यम से अपने लोगों से बोला है। यिरमियाह का ग्रंथ अध्याय 23 पद संख्या 29 में नबी के द्वारा प्रभु ईश्वर कहते हैं, "मेरी वाणी अग्नि जैसी है, वह उस हथौड़े की तरह है जो चट्टान को टुकड़े- टुकड़े कर देता है।" हमने देखा होगा किसी शिल्पकार को अपनी शिल्पकारी करते हुए कैसे वे अपनी हथौड़ी से पत्थर को तोड़कर मूर्ति बना देते हैं, उसी प्रकार प्रभु के वचन भी शक्तिशाली है। प्रभाव युक्त और रूपांतरणीय है। वचनों के द्वारा हमारा जीवन परिवर्तित हो जाता है।

हम जानते हैं कि प्रभु के वचनों ने संत अगस्तीन और संत फ्रांसिस जेवियर जैसे महान संतों के जीवन को परिवर्तित कर दिया था। संत अगस्तीन ने अपना आधे जीवन को अनैतिक रूप से व्यतीत किया था। जब उसने स्वयं को उलझन और संकटवस्था में पाया । बगीचे में टहलते समय उसने एक आवाज को ऐसा कहते सुना बाइबल खोलो और पढ़ो। उसने बाइबल खोली और रोमियों के नाम संत पौलुस के पत्र अध्याय 13 पद संख्या 13 से 14 पद पढ़ें- हम दिन के योग्य सदाचरण करें हम रंगरेलियों और नशेबाजी व्यभिचार और भोग विलास झगड़े और इससे दूर रहें। आप लोग प्रभु ईसा मसीह को धारण करें और शरीर की वासनाएँ तृप्त करने का विचार छोड़ दें। इन शब्दों में उसके जीवन को बदल दिया और एक महान संत बन गया। उसी प्रकार संत फ्रांसिस जेवियर के जीवन में भी ऐसी ही एक घटना घटित हुई। एक रात के वक्त संत इग्नासियुस लोयला बाइबल पढ़ रहे थे। उस वक्त सन्त फ्रांसिस भी उपस्थित थे, और उत्सुकता से सुन रहे थे। संत इग्नासियुस ने मत्ती अध्याय 16 पद संख्या 26 को पढ़कर सुनाया "मनुष्य को इससे क्या लाभ यदि सारा संसार प्राप्त कर ले लेकिन अपना जीवन गंवा दे? बाइबिल के इन शब्दों ने फ्रांसिस जेवियर के जीवन को रूपांतरित कर दिया और वह एक महान मशीनरी बन गया। संत अगस्तीन और फ्रांसिस जेवियर के उदाहरणों से हम यह जान पाते हैं कि यह शब्द कितने शक्तिशाली और रूपांतर करने वाले हैं। क्या हम विश्वास करते हैं कि ईश शब्द हमारे जीवन को रूपांतरित कर सकता है? यह प्रश्न हर विश्वासी को अपने आप से पूछना चाहिए।

आज के प्रथम पाठ में नबी इसायह यहां ईश-वचन के बारे में बताते हैं। नबी विश्वास करते हैं कि ईश-वचन कभी भी बेकार निष्फल नहीं हो सकता जो कुछ उसे पूरा करना है वह सदा पूरा करके दिखाएगा। नबी इसायह यहां प्रभु वचन की तुलना वर्षा से करते हैं। नबी के माध्यम से प्रभु ईश्वर कहते हैं, उसी तरह मेरी वाणी मेरे मुख से निकलकर व्यर्थ ही मेरे पास नहीं लोटती। मैं जो चाहता था वह उसे कर देती है और मेरा उद्देश्य पूरा करने के बाद ही वह मेरे पास लौट आती है। संत योहन येसु के बारे में कहते हैं। (अध्याय 1:14) "शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। शब्द रूपी येसु भी वर्षा के समान है वर्षा पृथ्वी पर उतर कर अपना काम पूरा किए बिना नहीं रहती। उसी तरह ईश्वर के पुत्र येसु ख्रीस्त ने भी जिस मिशन के लिए भेजे गए थे उन्होंने भी हमें पापों से मुक्त करके अपने मिशन को पूरा किया।

प्रश्न यह उठता है, क्या मैं प्रभु वचन को सुनता हूं या नहीं? वचन कहता है (मत्ती अध्याय 13:23) "जो अच्छी भूमि में बोया गया है वह यह है, जो वचन सुनता और समझता है और फल आता है कोई सौ गुना कोई साठ गुना और कोई तीस गुना- जब हम प्रभु वचनों को सुनकर समझ कर अपने जीवन में लागू करेंगे तो हमारा जीवन रूपांतरित हो जाएगा हम पहले जैसे व्यक्ति नहीं रहेंगे, परिवर्तन आ जाएगा यही है प्रभु वचनों का प्रभाव हम मनन चिंतन करें आज के पवित्र वचनों पर क्या मैं प्रभु के वचनों को सुनने वह समझने के लिए अपने हृदय को तैयार करता हूं या नहीं?