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चक्र- अ – सामान्य काल का चौदहवाँ इतवार

जकर्या 9: 9-10; रोमियों 8: 9,11-13; मत्ती 11: 25-30

ब्रदर अमित सोरेन (मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत)


विषय : येसु ख्रीस्त की नम्रता

ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एवं बहनों, नम्रता जीवन का सर्वश्रेष्ठ गुण है। हमारे जीवन में नम्रता का बहुत महत्व है, क्योंकि नम्रता ही व्यक्ति को महान बनाती है। नम्र व्यवहार से हम दूसरों के दिल को जीत सकते हैं, समाज में लोगों से प्रेम एवं स्नेह पा सकते हैं।

आज के पाठों में येसु ख्रीस्त की नम्रता का जिक्र किया गया है। आज के पहले पाठ में नबी जकर्या लिखते हैं कि तेरे राजा न्यायी और विजयी हैं। वह विनम्र है, वह गदहे के बछड़े पर सवार हैं। येसु ख्रीस्त अन्य राजाओं से बिल्कुल भिन्न थे। उस समय के राजा लोग घोड़े के रथ पर सवार हुआ करते थे, लेकिन येसु ख्रीस्त ने जब राजा के रूप में येरूशालेम में प्रवेश किया तो उन्होंने एक गदहे पर सवार होकर प्रवेश किया। प्रभु येसु ने महिमा के साथ येरूशालेम में प्रवेश किया तो नबी जकर्या की इस भविष्यवाणी को पूर्ण होते देखा गया। प्रभु येसु में विनम्रता का गुण कूट-कूट कर भरा हुआ था। इस बात का प्रमाण हम फिलिप्पयों के नाम पत्र में पाते हैं। “वह वास्तव में ईश्वर थे और उनको पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करे, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हां क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बनकर अपने को और भी दीन बना लिया । इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान बनाया और उनको वह नाम प्रदान किया, जो सब नामों में श्रेष्ठ है" ( फिलिप्पयों 2: 6-9)। येसु ख्रीस्त ने कभी ईश्वर की बराबरी नहीं की, परंतु वह दास का रूप धारण कर इस दुनिया में आया। इस उदाहरण के द्वारा येसु ख्रीस्त हमें विनम्रता का सबसे बड़ा पाठ सिखाते हैं। हमें भी येसु ख्रीस्त के विनम्रता का गुण अपनाना चाहिए ताकि पिता ईश्वर हमें भी उनके समान महान बना सकें। विनम्रता में ही महानता है इस बात को प्रभु येसु ने प्रमाणित कर हमें दिखाया है।

आज के सुसमाचार में येसु ख्रीस्त कहते हैं, "मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझसे सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं" (संत मती: 11: 29)। प्रभु येसु आज हमें आमंत्रित करते हैं कि हम अपनी सारी समस्याओं को उस पर उतार दे और बदले में वह हमें अपना जूआ देंगे जो सहना सहज और हल्का है। वह हमें बताते हैं कि जब हम पूरे दिल और मन से प्रार्थना करेंगे तो वह हमें विश्राम प्रदान करेंगे। येसु हमें जो जूआ दे रहे हैं, वह विनम्रता और नम्रता का जूआ है। हमलोग हमेशा बोझ और परेशान महसूस करते हैं क्योंकि हममें विनम्रता की कमी है। इसलिए येसु हमें अपने समान विनम्र बनने के लिए कहते हैं ताकि हम उसमें विश्राम पा सकें। प्रवक्ता ग्रंथ अध्याय 3: 20 में हम पढ़ते हैं, "तुम जितने अधिक बड़े हो उतने ही अधिक नम्र बनो - इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे"। प्रभु येसु अपने को दुनिया के सामने दुर्बल पेश करते हैं। वास्तव में प्रभु येसु ने अपनी नम्रता को हमारे सामने प्रकट किया है ताकि हम भी उनके इस गुण को अपने जीवन में उतार सकें। योहन के सुसमाचार अध्याय 13 में हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु अपने अंतिम व्यालु के दौरान भोजन पर से उठते हैं और अपनी बाह्य वस्त्र को उतारकर कमर में अंगोछा बांधकर, परात में पानी लेकर अपने शिष्यों के पैर धोने लगते हैं। उस जमाने में दास अपने मालिकों के पैरों को धोते थे; शिष्य अपने गुरुओं के पैर धोते थे। लेकिन येसु, प्रभु और गुरु होकर भी, अपने शिष्यों के पैरों को धोकर, एक नई परंपरा और एक महान उदाहरण आज हमें देना चाहते हैं। जब हम पवित्र वचन को पढ़ते हैं तो पवित्र वचन हमें नम्रता के बारे में बहुत कुछ सिखाता है। नम्रता एक ऐसा गुण है जो ख्रीस्त के प्रत्येक अनुयायी के जीवन में होना अति आवश्यक है। गणना ग्रंथ अध्याय 12: 3 हम पढ़ते हैं, "मुसा अत्यंत विनम्र था। वह पृथ्वी के सब मनुष्यों में सबसे अधिक विनम्र था। मुसा की विनम्रता के कारण पिता ईश्वर ने उन्हें बहुत बार दर्शन दिया। यदि हम ईश्वर को अनुभव करना चाहते हैं, और उसे गहराई से जानना चाहते हैं, तो हमें भी विनम्र बनना चाहिए। हम पिता ईश्वर से यही दुआ करें कि हम सब नम्र बने। ईश्वर हमें विनम्रता में बढ़ने की शक्ति प्रदान करें।

तो आइए प्रिय भाइयों एवं बहनों, ईश्वर को और अधिक गहराई से जानने के लिए, उसे अनुभव करने के लिए हम अपने अभिमान और अहंकार से छुटकारा पायें, एक विनम्र जीवन जियें, और येसु ख्रीस्त के सच्चे अनुयायी बन कर अपना ख्रीस्तीय जीवन व्यतीत करें।