preetam vasuniya

चक्र- अ – सामान्य काल का तेरहवां इतवार

2 राजा 4:8-11, 13-16, रोमियों 6:4,8-11, मत्ती 10:37-42

फ़ादर प्रीतम वसुनिया (इंदौर धर्मप्रान्त)


संत पौलुस ने पिछले रविवार के पाठ में हमें बतलाया कि किस प्रकार से दूसरे आदम याने मसीह ने अपने आज्ञापालन द्वारा प्रथम आदम के अवज्ञा के पाप का नाश किया। लेकिन हम पूछेंगे कि इससे हमको क्या लाभ मिला या फिर इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पडा? आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस इसका जवाब देते हुए हम से कहते हैं कि हमने मसीह की मृत्यु का बपतिस्मा ग्रहण किया है और उनके पुनरूत्थान द्वारा हमें नया जीवन मिला है। हमारा बपतिस्मा कोई महज एक धार्मिक रीती का निर्वहन ही नहीं है। मसीह में बपतिस्मा लेना उनके साथ पाप की ओर से मर जाने का प्रतीक है। पुराने जमाने में, यहाँ तक कि प्रभु येसु के समय में भी पानी में डुबकी लगाकर बपतिस्मा दिया जाता था। जब व्यक्ति डुबकी लगाता है तो कुछ क्षण के लिए उसे अपनी साँसे रोकनी पडती है। यह मनुष्य की मृत्यु और उसके दफनाये जाने का प्रतीक था। तथा जब व्यक्ति डुबकी लगाकर बाहत आता है तो वह एक नयी साँस लेता है जो मसीह में उसके पुनरूत्थान अथवा एक नये जीवन की शुरूआत का प्रतीक है।

यद्यपि हमें सिर्फ एक ही बार बपतिस्मा दिया जाता है, परन्तु इसका प्रभाव हमारे जीवन में सदा बना रहना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि मसीह में पाप की ओर से मरने और उनके साथ उनके पुनरूत्थान में एक नए जीवन के साथ जी उठने की क्रिया हमारे जीवन में निरन्तर चलती रहनी चाहिए । दूसरे शब्दों में यदि कहें तो जब-जब मैं पाप करता हूँ तब मुझे मेरी उस पापमय प्रवृति को मारना है, मेरे पापी स्वभाव को मुझे बारम्बार येसु के साथ क्रूस पर चढा देना है। और मसीह के पुनरुत्थान को, उनके जीवन को अपने जीवन में क्रियान्विवत होने देना है। जैसा कि संत पौलुस गलातियों 2ः20 में कहते हैं - ‘‘मुझमे मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझ में जीवित है।’’ जब तक हम पाप की ओर से नहीं मरते, मसीह का जीवन हमें प्रभाशाली नहीं होगा। यदि हम चाहते हैं कि येसु हममें जीवित रहे तो सबसे पहले हमें हमारे पापमय जीवन को मारना होगा, हमारे संसारी माया-मोह में फॅंसे जीवन से हमें बाहर आना होगा; हमें बहुत कुछ का त्याग व बलिदान करना होगा।

जी हाँ आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमें बतलाते हैं कि कौन व्यक्ति वास्तव में उनके योग्य हैं और कौन नहीं। सिर्फ वही व्यक्ति प्रभु येसु के योग्य होगा जिसने अपने जीवन में, अपनी रिश्तेदारी में, अपनी हर सोच में, बात और काम में सिर्फ येसु को ही पहला स्थान दिया है। येसु मसीह की राहों पर चलना एक बहुत ही बडी चुनौती है और एक बहुत ही बडा काम। येसु लोगों को उनका अनुसरण करने के पहले ही उन्हें चेता देते हैं कि उनके पीछे चलने का अर्थ है अपना क्रूस उठाकर उनका अनुसरण करना। बिना दुख सहे, बिना कष्ट सहे सिर्फ सांसारिक आनन्द, धन-दौलत और ऐशो आराम की जिंदगी की कामना करने वाले येसु के काबिल नहीं। येसु के शिष्य बनने के लिए हमें उन्हें और उनके वचनों को अपने सभी रिश्तों से उपर रखना होगा, चाहे वह हमारे माता-पिता भी क्यों न हो। इसका अर्थ यह हुआ कि मेरे जीवन में सबसे पहला स्थान सिर्फ येसु का ही हो। क्योंकि आज के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते कि जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता है वह उसे खो देगा और जो मेरे खतीर अपना जीवन खो दे देगा वह उसे सुरक्षित रखेगा।

हम इस संसार में कितने भी गहरे रिश्ते कायम कर लें, कितने भी बडे बंगले में रह लें, कितनी भी मंहगी गाडियों में घुम लें, कितनी ही पूॅंजी जमा कर लें, कितनी भी मंहगी दवाईयाॅं ले लें। इनमें से कोई भी हमारे जीवन की सुरक्षा की ग्यारंटी नहीं दे सकते। ये तमाम चीज़ें होने के बावजुद भी हमें आख़िर हमारा जीवन खोना ही पडेगा। पर यदि इन सारी चीजों़ से अपना दिल हटाकर यदि हम अपना दिल येसु को दे दें। अपना जीवन उन्हें सौंप दें तो अनन्तकाल के लिए हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा। आईये हम हमारे प्राणों के रक्षक येसु को अपना सर्वस्व सौंपे, हम अपने आप को उनमें खो जाने दें। ताकि वो हमारा उद्धार कर सकें, और हमारी आत्मा का सुरक्षित रख सकें। आमेन।