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चक्र- अ – सामान्य काल का सातवाँ रविवार

लेवी 19: 1-2, 1 कुरिन्थ. 3: 16-23, मत्ती 5: 38-48

ब्रदर संतोश कुमार (पोर्ट ब्लेयर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्रिय भाईयों एवं बहनों!

इस्राएली जनता को ईश्वर ने अपनी प्रजा के रूप में चुना। और उनके बीच एक विधान स्थापित किया कि वह उनका ईश्वर होगा और इस्राएली जनता उनकी प्रजा। जब भी दो लोगों के बीच या दो दलों के बीच समझौता होता है या अनुबंध पर सहमत होते है तो दोनों के लिए अधिकार तथा कर्त्तव्य स्पश्ट होना अनिवार्य होता है ताकि उनके बीच का संबध हमेशा मजबूत रहे।

आज के पहले पाठ मे हम देखते है कि प्रभु मूसा द्वारा लोगो से कहते है कि ‘‘इस्राएलियों के सारे समुदाय से यह कहो-पवित्र बनों, क्योकि मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर पवित्र हूँ। जब प्रभु ने जलती झाड़ी में मूसा से बात की तो प्रभु ने अपने आप का परिचय इस प्रकार दिया ‘‘मैं तुम्हारे पिता का ईश्वर हूँ, इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब का ईश्वर ।’’ और मूसा ने उस जगह की पवित्रता को दो प्रकार से बनाए रखा - एक तो उसने दूरी बनाए रखी तथा अपने पैरो से चप्पल उतार दी। और आज के पाठ में भी प्रभु इस्राएलियो को पवित्र बने रहने का आदेश दे रहे हैं। -प्रभु की चुनी हुई प्रजा होने के कारण उन्हें बहुत से अधिकार यों ही मिल गए, लेकिन फिर भी उन्हें अधिकार तथा फायदे के साथ कुछ कर्त्तव्यों का भी पालन करना था, जिसमें वे कभी-कभी असमर्थ हुए और प्रभु के विरुद्ध काम किया। बहुत सारे कर्त्तव्यों मे से कुछ कर्त्तव्यों को आज हमें पहले पाठ में बताया गया है।

प्रिय माता पिता भाईयों एवं बहनों, हम भी प्रभु ईश्वर से जुड़े रहना चाहता है हमें भी चाहिए कि हम उनके आदेशों का पालन करें ताकि हम भी प्रभु के समान पवित्र बनें रहें। इसलिए हमें याद दिलाया जा रहा है कि हमें भी प्रभु के समान पवित्र बने रहना है। ऐसा करने के लिए जरुरी है कि प्रभु इस्राएलियों को जो आदेश आज दे रहे हैं वह हमारे लिए भी उचित है कि हम भी उन आदेशों का निर्वाह करें, उन आदेशों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करें। एक आदेश प्रभु हमारे सामने रख रहें हैं जिसकी मदद से हम भी पवित्र जीवन जी सकते है और वह है पड़ोसी प्रेम। (प्रभु येसु ने पड़ोसी प्रेम का एक सुंदर सा उदाहरण हमारे सामने रखा है-भला समारी.........)

संत पौलुस भी हमें बताते हैं कि ईश्वर का मंदिर पवित्र है और वह मंदिर आप लोग हैं। और इस मंदिर में ईश्वर का आत्मा निवास करता है। आज के पाठों से हमें पवित्र बने रहने का आहवान दिया जा रहा है। जब हम पवित्रता की बातें करते है तो यह बाहरी चमक धमक, साज श्रृंगार से संबधित नहीं है। याद कीजिए जब मूसा ने जलती झाड़ी में ईश्वर से बातें की थी वह जगह जहाँ झाड़ी जल रही थी वहाँ अन्य झाड़ियां, पत्थर, धूल कण आदि रहे होगी। लेकिन ईश्वर की उपस्थिति ने उस जगह को पवित्र बनाया। हमें भी चाहिए कि हम भी ईश्वर के लिए पवित्र मंदिर बनें और ईश्वर हममें निवास करे। जब ईश्वर हममें निवास करने लगेंगे तो स्वतः ही हम भी पवित्र बन जाएंगे क्योंकि जहाँ प्रभु का निवास स्थान होता है वह स्थान पवित्र होता है।

आज के सुसमाचार के माध्यम से भी प्रभु येसु हमें शिक्षाएं दे रहे है ताकि हम भी पिता ईश्वर के समान पूर्ण बने, पवित्र बने। इससे पहले प्रभु ने संत मत्ती 5:17 में कहा है ‘‘यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ।’’ यहूदियों की परंपरा, नियम या संस्कृति पहले से ही कठिन थी जिसका पालन करना क्षमता के बाहर लगता था और प्रभु येसु उन नियमों को अगले स्तर पर ले जा रहें है जिसका पालन करना और भी कठिन है। जैसे जैसे हम सुसमाचार पढ़ते है तो हमें यह अहसास होने लगता है कि प्रभु येसु की ये शिक्षाओं का पालन करना हमारी शक्ति से परे है। इसलिए इन शिक्षाओं के अनुसार जीवन जीने के लिए हमें ईश्वर की कृपा की आवश्यकता है। क्योंकि हमने पाप किया है और उसकी कृपा हमारे लिए आवश्यक है। रोम 3:23 में हम पढ़ते हैं-क्योकि सबों ने पाप किया है और सब ईश्वर की महिमा से वंचित हो गए है। फिर भी संत पौलुस हमें आश्वासन देते हुए कहते है- 2 कुरि 12:9 ईश्वर की कृपा हमारे लिए पर्याप्त है। इसलिए आज जरुरत है कि हमें जो शिक्षाएं सुसमाचार में सुनाई जा रही है उनके अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए ईश्वर की कृपा प्राप्त हो ताकि हम भी प्रभु ईश्वर के समान अपने आपको पवित्र रख सकें इसके लिए भी हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगें।

यहूदियों की परंपरा या नियम रही थी कि आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत। सुनने में यह बहुत असभ्य और हिंसक लगता है लेकिन यह नियम उनके समय इसलिए निर्धारित किया गया था ताकि कोई किसी पर अत्याचार न करे और सभों के लिए न्याय की व्यवस्था कर सकें। साथ ही यह जो बदले का नियम था यह सुनिश्चित करता था कि अन्याय और न्याय के अनुपात में अंतर न हो । इस प्रकार किसी ने किसी की आँख फोड़ दी तो न्याय के अनुसार उसे सिर्फ आँख फोड़ने का ही अधिकार दिया जाता । दूसरे की जान लेने का अधिकार कभी भी नहीं दिया जाता था। समय के अनुसार नियमों में बदलाव लाए गए और नुकसान की भरपाई पैसे देने का नियम बनाया गया और नियम को अधिक सभ्य बनाने का प्रयास किया गया।

लेकिन प्रभु येसु इन नियमों से उपर उठकर हमें शिक्षा देते हुए कहते हैं कि-दुश्ट का सामना नहीं करो, यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा भी उसके सामने कर दो। प्रभु की शिक्षा का मतलब कदापि यह नहीं है कि समाज में जो न्याय की व्यवस्था है उसके कार्य में बाधा डालना। बल्कि प्रभु येसु की ये शिक्षाएं प्रत्येक ईसाई और हर एक सुनने वाले के लिए एक निमंत्रण और बुलावा है कि हम बदले की भावना नहीं रखेगें साथ ही कभी भी किसी भी विकट परिस्थिति में भी हिंसा का सहारा नहीं लेंगे हिंसा नहीं करेंगे।

ख्रीस्त में प्रिय भाईयों एवं बहनों!

आज बहुत सी शिक्षाएं प्रभु येसु हमारे सामने रख रहे है। अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करना, शत्रु का सामना नहीं करना, अत्याचार करने वालों के लिए प्रार्थना करना......। हममें से प्रत्येक पवित्र जीवन जीने के लिए बुलाए गए है। और आज जो हमें सुमाचार में शिक्षाएं दी जा रही हमें पवित्र जीवन के निर्वाह में हमरी सहायता करेंगें। आइए पिता ईश्वर से कृपा मांगे कि हम उनकी कृपा से प्रभु येसु के सिखाए मार्ग पर चल सकें। जिससे हम भी पूर्ण और पवित्र बने जैसे हमारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।