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चक्र- अ – सामान्य काल का छठवां इतवार

प्रवक्ता 15:15.20; 1कुरिन्थियों 2:6.10; मत्ती 5:17.37

ब्रदर अश्विन डामोर (झाबुआ धर्मप्रान्त)


खीस्त में मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, हम सामान्य काल के छठवें रविवार में प्रवेश कर चुके हैं। आज का पहला पाठ हमें ईश्वर के प्रति इमानदार रहने तथा अपने जीवन और मरण दोनों में से एक का चयन करने को कहता है। पिता ईश्वर ने हमारे सामने अग्नि और जल, यानी जीवन और मरण दोनों को रख दिया है। इनमें से हम जिसको भी चुनेंगे वही हमें मिलेगा क्योंकि मनुष्य जो भी करता है पिता ईश्वर वह सब जानता है। हम आज के पवित्र सुसमाचार में प्रभु की दस आज्ञाओं में से तीन अज्ञाओं के बारे में पढ़ते हैं।

इनमें पहली आज्ञा है - हत्या मत करो। हम भली भांति जानते हैं कि जब कोई भी व्यक्ति किसी मनुष्य की हत्या करता है तो उसे दंड दिया जाता है। उसे जेल में डाला जाता है। लेकिन आज के सुसमाचार के माध्यम से प्रभु हम से कहते हैं कि जो अपने भाई पर क्रोध करता है, वह कचहरी मे दंड के योग्य ठहराया जाएगा। प्रभु येसु कहता है कि जो अपने भाई से झगड़ा करता है, उस पर क्रोध करता है, उसके विपरीत अपशब्द कहता है वह दंड के योग्य ठहराया जाएगा।

संत मत्ती 5:23,24 में प्रभु येसु हमें अपने भाई से मेल मिलाप करने को कहते हैं। जब हम अपने भाई से क्रोधित हो जाते हैं, हम उससे अपना रिश्ता तोड़ देते या फिर उससे बातें करना बंद करते हैं और उसके खिलाफ हो जाते हैं। प्रभु येसु हमें इन सभी बातों को छोड़कर अपने भाई से मेल मिलाप करने की सलाह देते हैं। प्रभु कहते हैं “जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहां याद आये कि मेरे भाई को मुझसे कोई शिकायत है, तो अपनी भेंट वही वेदी के सामने छोड़कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आकर अपनी भेंट चढ़ाये। प्रभु हम से कहते हैं कि तुम न केवल हत्या करने से कचहरी में दंड के योग्य ठहराये जाओगे लेकिन अपने भाई पर क्रोधित होने से भी तुम ईश्वर के समक्ष दंड के योग्य ठहराये जाओगे।

दूसरी आज्ञा है - व्यभिचार मत करो। यहां प्रभु येसु साफ.साफ कहते हैं कि जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री को देखता है वह अपने मन में पाप कर चुका है। इसी तरह आगे प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि अगर तुम्हारी आंख या तुम्हारा हाथ पाप का कारण बनता है, तो उसे काट कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाये, किंतु तुम्हारा सारा शरीर नरक में ना डाला जाये। प्रभु के इन वचनों पर हम अपने दिल की गहराई से मनन करें और सोचें क्या प्रभु वास्तव हमें पाप से बचने के लिए अपनी आंख और अपना हाथ काटकर फेंकने को कह रहे हैं। पाप की गंभीरता को दर्शाने के लिए ही प्रभु इस प्रकार की बात करते हैं।

तीसरी आज्ञा है - अपने प्रभु ईश्वर की झूठी शपथ मत खाओ। प्रभु येसु हमसे कहते हैं “कभी भी किसी की भी शपथ नहीं खानी चाहिए। और न अपने सिर की क्योंकि हम इसका एक भी बाल सफेद या काला नहीं कर सकते।“ प्रभु येसु कहते हैं जब भी तुम्हारे बीच में ऐसी बात हो तो तुम्हारा जवाब सिर्फ हां या ना में होना चाहिए। क्योंकि जो इससे अधिक होता है वह बुराई से उत्पन्न होता है।

हमारे जीवन में जब भी कोई हमारी जबान और हमारी बातों पर विश्वास नहीं करता है, तब हम उनके सामने शपथ या कसम खाते हैं। अपने मम्मी-पापा या अपने बच्चों का नाम लेकर कसम खाते हैं। इस प्रकार कसम खाने के बावजूद भी कई बार हम अपनी बातों को रख नहीं पाते हैं। प्रभु चाहते हैं कि हम उनके शिष्य होने के नाते अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखें ताकि हमें कसम खाना ही ना पड़े या कसम खाने की जरूरत ही ना पड़े।

हम इन सभी बातों को मन में रखते हुए अपने मन को प्रभु की ओर अभिमुख करते हुए प्रभु की योग्य संतान बनने की कोशिश करें। सबसे पहले हम अपने जीवन के बारे में मनन चिंतन करें। क्या हमारा जीवन ईश्वर के विधान के अनुसार है या नहीं। हम विधि विवरण ग्रंथ 30:19 में पढ़ते हैं “मैं आज तुम लोगों के विरुद्ध स्वर्ग और पृथ्वी को साक्षी बनाता हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवित रह सकें। प्रभु येसु आज के सुसमाचार में हत्या, व्यभिचार तथा झुठी शपथ की नई परिभाषा देकर हमें समझाते हैं कि जीवन को चुनने का मतलब यह है कि हम हर एक व्यक्ति की ईश्वर की संतान योग्य गरिमा को स्वीकार करें और सभी के साथ त्रुटि रहित व्यवहार करें ताकि हम निष्कलंक हृदय से ईश्वर का दर्शन कर पाए क्योंकि वचन मत्ती 5:8 में यह भी कहता है कि धन्य है वे जिनका हृदय निर्मल है, वे ईश्वर के दर्शन करेंगे। आइए हम ईश्वर की आज्ञा अनुसार जीवन को चुनें ताकि हम प्रभु ईश्वर में हमेशा बने रहें और अमर जीवन को प्राप्त कर सकें।