इसायाह 58:7-10; 1कुरिन्थियो 2:1-5; मत्ती 5:13-16
प्रिय माता-पिताओ, भाइयो एवं बहनो, आज सामान्य काल का पाँचवाँ इतवार है। आज पवित्र कलीसिया हमें याद दिलाना चाहती है कि हम क्या हैं। बहुत से लोगों को यह पता नही है कि हम क्या हैं और इस दुनिया में हम क्यों हैं? मानव जीवन के दो पहलू हैं - अच्छाई और बुराई। इस तथ्य को समझना बहुत ज़रूरी है। बाईबिल में, इसायाह 43:4 में प्रभु ईश्वर का वचन कहता है “तुम मेरी दृष्टि में मूल्यवान हो और महत्व रखते हो”। तो हम ईश्वर की दृष्टि में मूल्यवान बनने के लिए बुलाये गये हैं परन्तु मूल्यवान बने रहने के लिए हमें भले कार्य करते रहने की जरूरत होती है। आज पवित्र कलीसिया हमसे यही आह्वान करती है कि हम भले कार्यों के द्वारा संसार में ज्योति बने, जिससे लोग हमारे भले कार्यों को देखकर स्वर्गीय पिता की महिमा करें।
आज के सुसमाचार में दो तत्वों के भले कार्य या अच्छे गुणों को हमारे सामने प्रस्तुत किया गया है। वे हैं नमक और ज्योति। यहूदी पूजा स्थलों में ये दो तत्वों को बहुत बडी दर्जा दी जाती थी। नमक तथा ज्योति को व्यापक रूप से एक प्रतीक और पवित्र चिन्ह के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
पहला है - नमक। पुराने विधान में धार्मिक बलिदान के समय नमक का उपयोग किया जाता था। लेवी ग्रन्थ 2:13 में लिखा हैः “आपके अन्नबलि के सब चढ़ावे में नमक मिलाना और अपके परमेश्वर की वाचा के नमक को आपके अन्नबलि में से घटिया न होने देना”। एज़ेकिएल 43:24 में लिखा हैः “होम बलि पर नमक डाला गया”। मंदिर की भेंट के हिस्से में नमक शामिल था (एज्रा 6:9)। प्राचीन इस्राएलियों के दौर में नमक को व्यापक रूप से एक प्रतीक और पवित्र चिन्ह के रूप में इस्तेमाल किया जाता था, गणना ग्रन्थ 18:19 और 2 इतिहास 13:5 नमक का जिक्र दोस्ती की वाचा के रूप में किया गया है। इस से पता चलता है कि नमक एक मूल्यवान तत्व है इसीलिए वचन हमसे कहता है कि तुम संसार के नमक हो अर्थात हम मूल्यवान है।
परंतु यहाँ मनन करने की जरूरत है कि नमक अपने आप को कैसे मूल्यवान बनाए रखता है। सुसमाचार में लिखा है कि नमक अपने आप को नमकीन बनाए रखता है। वह अपने आप को फीका नहीं पडने देता है। इसलिए वह नमक कहलाता है और वह मूल्यवान बना रहता है। हमें भी अपने आध्यात्मिक जीवन को कभी फीका नहीं पड़ने देना है। उसे निरंतर प्रार्थनामय जीवन से नमकीन बनाऐ रखना है। संत पौलुस एफेसियों को पत्र लिखते हुए कहते हैं अध्याय 6:18 में “आप लोग हर समय आत्मा में सब प्रकार की प्रार्थना तथा निवेदन करते रहे”। लूकस के सुसमाचार 18:1 में प्रभु का वचन कहता है नित्य प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हिम्मत नही हारनी चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं तो हम दूसरों के जीवन को भी नमकीन बना सकते हैं।
दूसरा तत्व जो प्रस्तुत किया गया है, वह है ज्योति। निर्गमन ग्रंथ में मंजूषा-निर्माण की विधि के बारे में प्रभु ईश्वर मूसा से कहते है: “तुम शुध्द सोने की दीवट बनाना, दीवट गढ़ी हुई हो, और उसका आधार, उसका डण्डा, उसके प्याले, उसकी कलियाँ, और उसके फूल भी उसके साथ एक टुकड़े के हों (निर्गमन 25:31)। आगे लिखा हैः “और उसमें सात दीपक बनाना, और वे उसके दीपक जलाएं, कि उसके सामने के स्थान को उजियाला दें” (निर्गमन 25:37)।
दीपक और दीवट का उल्लेख संत योहन अपने दृश्य में भी देखता हैः “मैं उस आवाज को देखने के लिए मुड़ा जो मेरे साथ बोल रही थी। मुड़कर मैंने सोने की सात दीवटें देखी” (प्रकाशना ग्रन्थ 1:12)। इस प्रकार दीपक अपने आप में एक विशेष महत्व रखता है और वह ईश-मंदिर में तथा मनुष्य के राह में ज्योति दिखाने का काम करता है। पवित्र वचन कहता है कि तुम संसार की ज्योति हो। यदि हम ज्योति के भले कार्य या अच्छे गुण देखें तो- वह प्रकाश दिखाता है, वह चीजों को अपनी और आकर्षित करता है और वह अंधकार में लोगों की अगुवाई करता है। वचन कहता है कि आप सब ज्योति की संतान हो (1 थेस 5:5)। यदि हम ज्योति की संतान हैं तो हमें ज्योति के अच्छे गुण या भले कार्यों को अपने जीवन में अपनाना है ताकि हम औरों को भी ज्योति के मार्ग में ले चल सकें। आज के सुसमाचार में इन मूल्यवान तत्वों का उदाहरण देकर हमें भले कार्य करने की प्रेरणा दी गई है। इसीलिए पवित्र कलीसिया आज के पाठों के माध्यम से हमें कहती है कि तुम संसार के नमक हो, तुम संसार की ज्योति हो। इस प्रकार हम भले कार्य करने के लिए बुलाए गए हैं।
आज के परिवेश में भले कार्य क्या हैं? आज के पहले पाठ में स्पष्ट रूप से हमारे सामने भले कार्यों का वर्णन किया गया है। वचन कहता है अपनी रोटी भूखों के साथ खाना, बेघर दरिद्रों को अपने यहाँ ठहराना, जो नंगा है उसे कपड़े पहनाना और अपने भाई से मुँह नहीं मोड़ना। मत्ती 25:31-46 में भी इन बातों का विवरण दिया गया है जहाँ कहा गया है कि न्याय के दिन इन्हीं भले कार्यों से हमारा न्याय किया जाएगा। आज के पहले पाठ में कहा गया है कि यदि हम इन भले कार्यों को करते हैं तो हमारी धार्मिकता उषा की तरह चमकेगी और ईश्वर की महिमा हमारे पीछे-पीछे आती रहेगी। यदि हम इसके विपरीत बुरे कार्य करते हैं तो हम उस फीके नमक की तरह बाहर फेंके और मनुष्य के पैरों तले रौंदे जाएंगे। इस प्रकार की कुछ बातें आज के दुसरे पाठ में हम सुनते हैं।
आज के दूसरे पाठ में कुरिन्थ के निवासियों के बारे में जिक्र किया है। जब कुरिन्थ के लोग बुरे कार्यों में डूबने लगे जैसे दलबंदी, कामों में मूर्खता, घमंड इत्यादि, तब संत पौलूस उनके बीच में ईश्वर का वचन लेकर आते हैं और इस भले कार्य के द्वारा उनके जीवन में ज्योति का दीपक जलाते है और तब लोग वचनों को सुनकर ईश्वर की महिमा करते हैं।
हम भी अपने जीवन में कई बार भले कार्य करते हैं, परंतु कभी-कभी उनमें ईश्वर की महिमा दिखाई नहीं देती है। भले कार्य करने के लिए हमें तीन बातों को ध्यान में रखना जरुरी है। पहला है, हमारा काम सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की महिमा के लिए होना चाहिए। प्रभु येसु को पिता ईश्वर के द्वारा मुक्ति का कार्य सौंपा गया तो वे हर कार्य में अपने पिता को ही महीमा देते थे। प्रभु येसु कहते हैं, “मेरे पिता की महिमा इससे प्रकट होगी कि तुम लोग बहुत फल उत्पन्न करो और मेरे शिष्य बने रहो” (योहन 15:8)। गेतसेमनी बारी में प्रभु येसु पिता ईश्वर से कहते हैं, “मेरी इच्छा नहीं बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो” (मारकुस 14:36), जब कि प्रभु येसु स्वयं ईश्वर थे फिर भी उन्होंने पिता ईश्वर की महिमा के लिए हर कार्य को पूरा किए। दूसरा है, कोई भी कार्य स्वउद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं करें। पुनरुत्थान के बाद प्रभु येसु अपने शिष्यों को मिशन कार्य सौंपते हैं (मत्ती 28:16-20) तब वे लोग उस मिशन को पूरी लगन और इमानदारी से ईश्वर के उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते रहे। और तीसरा है, हमारा काम निष्कामकर्म हो अर्थात हम निस्वार्थ भाव से कार्य करें। अक्सर प्रभु येसु फरीसियों के कार्यों के खोखलेपन को लोगों के सामने प्रकट करते थे क्योंकि वे लोग किसी भी काम को प्रतिफल की आशा से करते थे।
भले कार्य के विषय में संत अगस्तीन अपनी किताब में लिखता है, “जब ईश्वर ने दुनिया की रचना की और यह दुनिया ईश्वर की अच्छाई और भले कार्यों के द्वारा अपने अस्तित्व में आया तो यह निस्वार्थ, निष्काम और ईश्वरीय भले कार्यों की महिमा का परिणाम था”। यदि हम सृष्टि की उत्पत्ति से देखें तो हर चीज की सृष्टि के बाद ईश्वर ने उसे अच्छाई का करार दिया। उत्तपति ग्रंथ कहता है ईश्वर को अच्छा लग.... (उत्तपति 1: 12,18)। अर्थात ईश्वर भला है और हम से भला चाहता है।
तो आइए इन तीन बिंदुओं को ध्यान में रखकर भले कार्य करने के लिए आगे आयें ताकि भले कार्यों के द्वारा हम संसार के लिए ज्योति बने, जिससे लोग हमारे भले कार्यों को देख कर हमारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें।