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चक्र- अ – सामान्य काल का चौथा इतवार

सफन्याह 2:3,3:12-13; 1 कुरिंथियों :26-31; मत्ती 5:1-12

सफन्याह 2:3,3:12-13; 1 कुरिंथियों :26-31; मत्ती 5:1-12


आज सामान्य काल का चौथा इतवार है। माता कलीसीया हमें याद दिलाती है कि हमें ईश्वर की प्रवित्र प्रजा होने के नाते हमें विनम्रता का गुण धारण करना चाहिए।

हम ईश्वर कि प्रजा हैं अत: हमें ईश्वर के आदेशों के अनुसार चलना चाहिए। फिलिप्पियों के नाम संत पोलुस का पत्र 2:5-11, सतं पौलुस कहते हैं कि हमें ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार हमारे मनोभावों को बनाना चाहिए। उनका कहना है जिस प्रकार प्रभु येशु ने ईश्वर होकर भी ईश्वर की बराबरि नहीं की, और मनुष्यों के मुक्ति के लिए उन्होने दास का रुप धारण किया, उसी प्रकार हमें उस प्रभु येसु के समान विनम्रता धारण करनी चाहिए|

हम ईश्वर की प्रजा हैं। अत: हमें ईश्वर के आदेशों के अनुसार चलना चाहिए। हमें ईश्वर की प्रजा होने के कारण धामिकता तथा विनम्रता की साधना करनी चाहिए। योब के ग्रान्थ में हमें य़ह देखने को मिलता है, कि योब अपने जीवन काल में प्रभु ईश्वर के सामने अपने आपको नम्र बनया। उसके पास धन-सम्पति थी या नहीं, उसने प्रभु के सामने सदा अपने आपको नम्र बनाया। इसलिए प्रभु ईश्वर ने फिर उसे सम्पन्न बनाया, और पहले उसके पास जितनी सम्पति थी, उसकी दुगुनी कर दी।

आज के पहले पाठ में नबी सफन्याह के द्वारा प्रभु कह्ते हैं, “ईश्वर के आदेश पर चलने वाले देश-भर के विनम्र लोगो! धामिकता तथा विनम्रता कि साधना करो। तब ईश्वर के क्रोध के दिन तुम सम्भवत: सुरक्षित रह सकोगे।” ईश्वर की प्रवित्र प्रजा होने के कारण, हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए, ताकि विपत्ति के समय हम प्रभु के नाम की शरण ले सकें। स्तोत्र 118: 8-9 में पवित्र वचन कहता है, “मनुष्यों पर भरोसा रखने की अपेक्षा, प्रभु की शरण जाना अच्छा है। शास्कों पर भरोसा रखने की अपेक्षा, प्रभु की शरण जाना अच्छा है।” हमें अधर्म का साथ नहीं देना चाहिए, झूठ नहीं बोलना और छ्ल-कपट की बातें नहीं करनी चाहिए।

दूसरे पाठ में, संत पौलुस हम से कहते हैं कि हमें किसी चीज पर गर्व नहीं करना चाहिए, जो भी वरदान हमें मिला है वह सब ईश्वर का दिया हुआ दान है। इसलिए हमें गर्व नहीं करना चाहिए। समुएल का पहला ग्रन्थ 16:7 में प्रभु ईश्वर समुएल से कहते हैं, "प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता, मनुष्य तो बाहरी रुप-रंग देखता है, किन्तु प्रभु हदय देखता है।”

प्रभु ईश्वर, ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए उन लोगों को चुनता है, जो इस संसार की दृष्टि में मूर्ख हैं। शाक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उन लोगों को चुनता है, जो इस संसार की दृष्टि में दुर्वल हैं। आगे संत हम से कहते हैं, हमें अपना घमण्ड दूर करना चाहिए, ताकि हम ईश्वर की दृष्टि में विनम्र बन पायें। संत पौलुस हम से यह भी कहते है, “यदि हम में से कोई भी गर्व करना चाहे, तो वह प्रभु पर गर्व करें”।

आज के सुसमाचार के द्वारा प्रभु येसु हम से कहते हैं, “धन्य है वे जो नम्र है। उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।” मत्ती के सुसमाचार 11:29 में प्रभु येसु कह्ते हैं, "मेरा जुआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सिखों। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे। हम लोग ईश्वर की चुनी हुई प्राजा है। इसलिए हमें विनम्रता धारण करनी चाहिए। यदि हम में से किसी को किसी से कोई शिकायत हो, तो हमें एक दुसरे को क्षमा करना चाहिए जैसा कि प्रभु ने हम लोगों क्षमा किया है।

आईए, हम अपने प्रभु ईश्वर से यह प्राथेना करें, "हे प्रभु मुझे विनम्रता धारण करने में मदद कर, और मुझे प्यार करने और तेरी और दुसरों की सेवा करने केलिए एक नम्र और विनम्र सेवक बना। आमेन।