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चक्र- स – सामान्य काल का तैंतीसवाँ इतवार

मलआकी 4:1-2; 2 थेसलनिकियों 3:7-12; लूकसः 21:5-19

ब्रदर अमित सोरेन (मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे भाइयों एंव बहनों, हम लोग पूजन-पद्धति के लगभग अंतिम चरण पर पहुँच चुके हैं। इसलिए आज के तीनों पाठों में दुनिया के अंत में घटित होने वाली घटनाओं एंव येसु मसीह के पुनरागमन के बारे में जिक्र किया गया है। जब कभी भी हम दुनिया के अंत होने की घटना के बारे में सुनते हैं, तब हम लोग भयभीत हो जाते हैं और हम सोचते हैं कि एक न एक दिन इस संसार का अंत हो जायेगा, इस दुनिया में जो कुछ है मौजुद है एक न एक दिन खत्म हो जायेगा। जिसने हमें बनाया उसी के पास एक दिन हम सब को जाना पड़ेगा। लेकिन ये यब कब घटित होगी - हमें इसकी कोई जानकारी नहीं है। इसलिए आज हमें अपने अंत, हमारे जीवन के संकट एंव मुसीबतों का कैसे सामना करना है, इसके बारे में मनन करना अति आवश्यक है। नबी मलआकी आज के पहले पाठ में यह संदेश देना चाहते हैं की हमें सदाचरण के द्वारा अपने अंत की तैयारी करनी चाहिए। हमें कुकर्मों को छोड़ कर सही रास्ते पर चलना चाहिए। वे कहते हैं, ”तुम पर, जो श्रद्धा रखते हो, धर्म के सूर्य का उदय होगा, और उसकी किरणें तुम्हें चंगा करेगा“ (मलआकी 3:20)। यदि हम ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा रखकर अपना जीवन व्यतित करते हैं और ईश्वर के बताये हुए रास्ते पर चलते हैं, तो हम इस संसार की कोई भी बुराइयों एंव विपत्तियों से छुटकारा पा सकते हैं। क्योंकि ईश्वर का आत्मा हम पर उतरेगा और हमें चंगाई प्रदान करेगा।

आज के दुसरे पाठ में संत पौलुस थेसलनीकियों को यह निमंत्रण देते हैं कि वे उनके जीवन का अनुकरण करें। संत पौलुस थेसलनीकियों को खुद का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उसने कभी आलस्य का जीवन नहीं जिया। वे अपने दैनिक जीवन की रोटी खुद कमा कर खाते थे। वे लिखते हैं ”मैंने कठोर परीश्रम किया और बहुत-सी रातें जागते हुए बितायी“। संत पौलुस आज के दुसरे पाठ के द्वारा हमें यह कहना चाहते हैं कि मसीह का दुबारा प्रकट होने की तिथि निश्चित नहीं है, वह किसी भी दिन आ सकते हैं। वह जब आयेंगे उस दिन कुछ लोग रोयेंगे और कुछ लोग खुशियाँ मनायेंगे। जो लोग प्रभु येसु के स्वागत हेतु तैयार रहेंगे, वे ही लोग आनन्द मनायेंगे। इसके लिए हमें आध्यात्मिक रूप से हमेशा तैयार रहना चाहिए। सुक्ति 6:6-9 में हम पढ़ते हैं ”अरे ओ आलसी, चींटी के पास जा। उसकी कार्यविधि देख और उससे सीख ले। उसका न तो कोई नायक है, न ही कोई निरी़क्षक न ही कोई शासक है। फिर भी वह ग्रीश्म में भोजन बटोरती है और कटनी के समय खाना जुटाती है“। हम चींटियों से यही सीख लें कि हम अपने दैनिक जीवन में कठीन परीश्रम करें।

हमें आलस्य का जीवन त्याग कर अपने कार्य में व्यस्त रहना चाहिए, यह सोचते हुए कि मसीह एक दिन जरूर आयेंगे। आज हम अपने आप को जाँच कर देखें कि क्या हमने आलस्य का जीवन जिया है? हमें जो भी जिम्मेदारियाँ दी गयी हैं क्या हमने उन्हें ईमानदारी से निभाया है? इस पृथ्वी पर हमारा जीवन बहुत छोटा है। हम कितने भी वर्ष जियें, हमें अच्छा काम करके येसु के पास जाना चाहिए जिससे हम येसु ख्रीस्त के दायें खडे़ होने के योग्य बन सकें। न्याय के दिन प्रभु येसु हम सबों से यह बात कह सकें, ”मेरे पिता के कृपापात्रो ! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है।“

आज के सुसमाचार में येसु ख्रीस्त बताते हैं कि लोग मेरे कारण तुम पर हाथ डालेंगे। तुम पर अत्याचार करेंगे, तुम्हें सभागृहों तथा बन्दीगृहों के हवाले कर देंगे, राजाओं तथा शासकों के सामने खींच ले जाऐंगे। यहाँ पर येसु ख्रीस्त हमसे अपने विश्वास पर दृढ़ बने रहने के लिए कहते हैं जिससे हम विपत्ति के समय न घबरायें। जब कभी भी कोई हम पर अत्याचार करे तो उस समय हमें ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखते हुए प्रभु के लिए साक्षी बनने के लिए अपने विश्वास पर दृढ़ रहना चाहिए। हमें जो भी अत्याचार या हिंसा येसु के नाम पर सहना पडे़, वह प्रभु येसु के लिए साक्षी बनने का उत्तम अवसर है। लूकस रचित सुसमाचार 12:11-12 में हम पढ़ते हैं ”जब वे तुम्हें सभागृहों, न्यायधीशों और शासकों के सामने खींच लें जायेंगे, तो यह चिंता न करो कि हम कैसे बोलेंगे और अपनी ओर से क्या कहेंगे; क्योंकि उस घड़ी पवित्र आत्मा तुम्हें सिखायेगा कि तुम्हें क्या-क्या कहना चाहिए“। प्रिय भाइयों एंव बहनों पिता ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा एक सहायक के रूप में दिया है, जो हमें बैरियों के सभी जंजीरों से छुटकारा दिलायेगा। यदि हम प्रभु येसु के सच्चे साक्षी बनना चाहते हैं तो हमें पवित्र आत्मा की जरूरत है। वही हमारा मार्गदर्शन करेगा। हमें पवित्र आत्मा से सच्चे मन से प्रार्थना करना चाहिए। आज प्रभु येसु हमें आश्वासन देते हुए कहते हैं कि हम ऐसी विशम स्थिति में चिंता न करें, क्योंकि पवित्र आत्मा हमारे पास है। वही हमें संकटों में, मुश्किल क्षणों में हमारी सहायता करेगा। ऐसे अवसर पर हमें अपने बौद्धिक बल की अपेक्षा पवित्र आत्मा का सहारा लेना चाहिए। ताकि हम पवित्र आत्मा के द्वारा बल प्राप्त कर दुसरों के जीवन के लिए उद्धार का कारण बन सकें।

आज के सुसमाचार के सबसे अंतिम वाक्य में प्रभु येसु हमसे कहते हैं ”अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे“। जब हमारे जीवन में मुश्किल की घड़ी आती है, हम दुःख एंव संकटों से घिरे हुए रहते हैं, तब ऐसी स्थिति में हमें प्रभु पर आस्था नहीं खोनी चाहिए, बल्कि हमारे विश्वास को पूर्ण रूप से जीने में धीरज रखना चाहिए। हमें सुसमाचार का प्रचार आत्मविश्वास के साथ एंव साहसपूर्वक करना चाहिए, ताकि हम अपनी आत्मा को बचा सकें। आज हम अपने आप से दो प्रश्न पूछें: 1) हमें धीरज कैसे रखना चाहिए? 2) येसु का क्या तात्पर्य है जब वह कहते हैं ”तुम अपनी आत्मा को बचा लोगे“। जिस प्रकार एक धावक धीरज के साथ प्रशिक्षण लेता है, उसी प्रकार हमें आत्मिक सहनशक्ति के लिए भी प्रशिक्षण लेना चाहिए। हमें अपने जीवन में कठिन परीक्षाओं का सामना करने के लिए आध्यात्मिक सहनशक्ति के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए। चाहे जितनी भी विपत्तियाँ हमारे उपर आ जायें, लेकिन यदि हमारा विश्वास प्रभु पर अटूट है, यही विश्वास हमें सभी विपत्तियों से मुक्त कर देगा। आज प्रभु येसु हम से आह्वान करते हैं कि हम दुःख एंव पीड़ाओं में धैर्य रखें।

प्रिय भाइयों एंव बहनों, हम अपने सम्पूर्ण जीवन को प्रभु के चरणों में सौंप दें ताकि हम अपने जीवन के दुःख एंव तकलिफों को धैर्य से सह सकें। संत पौलुस, रोमियों को लिखते हुए कहते हैं; ”आप संकट में धैर्य रखें तथा प्रार्थना में लगें रहें“ (रोमियों के नामः 12:12)। हम ख्रीस्तियों के लिए प्रार्थना ही एक ऐसा हथियार है जो ईश्वर के साथ हमारा समबन्ध गहरा बनाता है। हमें विश्वास के साथ ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए। जब भी हम दुःख तकलीफ में रहते हैं, हमें प्रभु येसु से निरंतर धैर्यपूर्वक प्रार्थना करना चाहिए। येसु के शिष्यों को भी सुसमाचार के कारण घोर अन्याय तथा अत्याचार सहना पड़ा था। किन्तु वे इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए। परिणाम स्वरूप वे जीवन के अधिकारी बन गये। आइये हम भी प्रभु येसु से यही दुआ माँगे कि हम भी अपने जीवन के सभी मुश्किलों का सामना धैर्य से कर सकें और अपने विश्वास में दृढ़ बने रहें।