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चक्र- स – सामान्य काल का बत्तीसवॉ इतवार

2 मक्काबियों 7:1-2,9-14; 2 थेसलनीकियों 2:16-3:5; लूकस 20:27-38

ब्रदर सुरेन्द्र कुमरे (जबलपूर धर्मप्रान्त)


हम सबके जीवन में सही मायने में जीने के लिए विश्वास और विश्वास में दृढ़ता व मजबूत नीव का होना अत्यन्त आवश्यक है। माता-पिता का यह कर्तव्य बनता है कि वे अपने बच्चों को अपने विश्वास में मज़बूत बनायें। आज के पहले पाठ मे हमारी मुलाकात एक आदर्श माता से होती है। एक माँ के सात बेटे, अपनी माँ के द्वारा सिखाये गये ईश्वर के प्रति विश्वास और प्रेम का साक्ष्य देते हैं। उन सात बेटों की माँ ने अपने वचनों तथा कार्यों से उन्हें यह सिखाया कि विपत्तियों और दुःख-तकलीफों में अपने विश्वास में कभी विचलित न्हीम होना चाहिए।

पहले पाठ में हमने सुना, एक माँ के सात बेटे हैं और उनमें ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास है। उन्हें अपने ईश्वर पर पूर्ण विश्वास है कि यंत्रणा सहने तथा मारे जाने के बावजूद भी उन्हें निवजीवन प्राप्त होगा; वे मरने पर भी ईश्वर में पुनर्जीवित होंगे, ईश्वर उन्हें अनन्त जीवन देगा। आज हम चारों ओर सुनते हैं कि ख्रीस्त के अनुयायी धर्म के नाम पर सताये जाते हैं उदाहरण के लिए कन्दमाल, उडीसा की कलीसिया। ऐसे ही विभिन्न स्थानों में विश्वासियों को धर्म छोडने के लिए बाध्य किया जाता है। इस प्रकार आज के पहले पाठ से हम आज की वर्तमान कलीसिया से तुलना करें तो कलीसिया एक माँ के समान है और हम अल्प संख्यक ईसाई उन सात बेटों की तरह हैं। परन्तु यहॉ झॉक कर देखने की जरूरत यह है की क्या मैं उन सात बेटों में एक के समान भी हूँ या नहीं जो कि ऐसी परिस्थितियों में अपने विश्वास को बचा पाउॅगा।

ऐसी परिस्थितियों में संत पौलुस हमें आशा दिलाते हैं, कुरिंथियों के नाम दुसरा पत्र 4:16-18 में वे लिखते हैं, ‘‘हम हिम्मत नहीं हारते। हमारे शरीर की श्क्ति भले ही क्षीण होती जा रही हो, किन्तु हमारे आभ्यांतर में दिन-प्रतिदिन नये जीवन का संचार होता रहता है; क्योंकि हमारी क्षण भर हलकी-सी मुसीबत हमें हमेशा के लिए अपार महिमा दिलाती है। इसलिए हमारी ऑखें दृश्य पर नहीं बल्कि अदृश्य चीजों पर टिकी हुई है, क्योंकि हम जो चीजें देखते हैं वे अल्पकालिक हैं, अनदेखी चीजें अनन्त काल तक बनी रहती हैं।’’ शायद उस माँ ने इसी असीम पूँजी की शिक्षा अपने बच्चों को दी थी जिसके कारण उन बच्चों ने अपने संसारिक जीवन एवं नश्वर शरीर की चिन्ता नहीं की, परन्तु ईश्वर में पुनर्जीविन होकर नव जीवन प्राप्त करने की आशा रखी।

मत्ती 6:19-20 में पवित्र वचन कहता है, “पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा नहीं करो, जहाँ मोरचा लगता है, कीड़े खाते है और चोर सेंध लगाकर चुराते है। स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो जहाँ न तो मोरचा लगता है न कीड़े खाते है और न ही चोर सेंध लगाकर चुराते है। क्योंकि जहाँ तुम्हारी पॅूजी है वही तुम्हारा हृदय भी होगा।” अर्थात् हम अपने जीवन में जैसे व्यवहारिकता अपनायेंगे वैसे ही हमारी जीवन की रक्षा भी होगी। हममें से अत्यधिक लोग केवल संसारिक जीवन जीना पसंद करते हैं। और दुःख तकलीफ या प्रताड़ना की घड़ी में अपने विश्वास को त्यागकर दुर भागते हैं।

2 कुरिंथियों 4:7-9 मे वचन कहता है, “यह अमुल्य निधि हममें मिट्टी के पात्रों में रखी रहती है जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि अलौकिक सामर्थ्य हमारा अपना नहीं, बल्कि ईश्वर का है। हम कष्टों में घिरे रहते है परन्तु कभी हार नही मानते, हम परेशान होते है परन्तु कभी निराश नहीं होते। हम पर अत्याचार किया जाता है, परन्तु हम अपने को परित्यक्त नहीं पाते। हमको पछाड़ दिया जाता है, परन्तु हम नष्ट नहीं होते।“ यदि हमारा विश्वास दृढ़ हो तो हमें ईश्वर में नव जीवन प्राप्त होगी, हमारे हर दुःख तकलीफ मिट जायेंगे, हमारा पुनरूत्थान होगा जैसे 2 कुरिंथियों 4:13-14 में पवित्र वचन कहता है ‘‘हम विश्वास करते है और इसलिए हम बोलते हैं। हम जानते है कि जिसने प्रभु येसु को पुनर्जीवित किया वही येसु के साथ हमें भी पुनर्जीवित कर देगा और आप लोगों के साथ हम को भी अपने पास रख लेगा।’’

आज के सुसमाचार में पुनर्जीवन पर सवाल उठाया गया है कि सातों भाईयों में से वह स्त्री पुनरूत्थान के बाद किसकी पत्नी होगी? येसु उत्तर देते हुए कहते हैं कि परलोक में न तो पुरूष विवाह करते हैं और न ही स्त्रियॉ विवाह मे दी जाती हैं। वे फिर कभी नहीं मरते। वे तो स्वर्गदूतों के सदृश्य होते हैं और पुनरूत्थान की सन्तति होने के कारण वे ईश्वर की संतान बन जाते हैं। यदि हमारा विश्वास ईश्वर में दृढ़ बना रहता है और उसके अवधारणाओं के अनुकूल रहता है तब हमें ईश्वर की संतान बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा।

हम ख्रिस्तियों के लिए पुनरूत्थान बहुत ही मायने रखता है। हम जानते हैं कि हम मिट्रटी के बने हैं और मिट्रटी में मिल जायेंगे। फिर भी हम पुनरूत्थान में विश्वास रखते हैं। हमें राख-बुध के दिन राख लगाकर कहा जाता है ‘‘हे मनुष्य तुम मिट्टी के बने हो और मिट्टी मे मिल जाओगे’’। अर्थात् हम जहाँ से आये है वही हमे वापस जाना है। हम सबने बपतिस्मा संस्कार द्वारा त्रियेक ईश्वर में एकत्र होने का अधिकार प्राप्त किया है अतः यदि हम पुनरूत्थान के योग्य पाये जाते है तो हम ईश्वर में एक हो जायेंगे।

क्या मैं पुनरूजीवित मसीह में सहभागी हो सकता हॅू? आईये हम इस पूरे सप्ताह के लिए एक जीवन्त वचन ले कर जाए और हर समय अपने मन में दुहराते रहें। योहन 11:25 ”पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा और जो मुझ में विश्वास करते हुए जीता है वह कभी नही मरेगा।“