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चक्र- स – सामान्य काल का तीसवाँ इतवार

प्रवक्ता 35: 12 - 14, 16 - 18, 2 तिमथी 4: 6 - 8, 16 - 18, लूकस 18: 9 – 14

ब्रदर अभिषेक चरपोटा (इन्दौर धर्मप्रान्त)


हमारे जीवन में अक्सर हम देखते हैं कि कुछ धनी व्यक्ति अपने आपको लोगों के सामने प्रदर्शित करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि लोग उनकी सुने, उनका सम्मान करें इत्यादि। वे घमंड करते हैं और धन की शक्ति से लोगों को अपने अधीन रखना चाहते हैं। उनमें भेदभाव की भावना होती है और वे गरीबों को तुच्छ समझते हैं। कुछ ऐसा ही आज के पवित्र सुसमाचार में भी हमें देखने को मिलता है।

आज के पवित्र सुसमाचार में प्रभु येसु हमें नाकेदार और फरीसी का दृष्टांत सुनाते है। यह दृष्टांत प्रभु इसलिए सुनाते हैं कि कुछ लोग बडें आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी मानते और दूसरों को तुच्छ समझते थे।

फरीसी अपने आपको धर्मी साबित करना चाहता है तथा अपने धार्मिक कार्यों का वर्णन करना चाहता है। वह दूसरों के साथ तुलना करके दूसरों को अधर्मी और अपने आपको धर्मी साबित करना चाहता है। लेकिन नाकेदार अपने आप को पापी मानता है। वह पश्चाताप करता है तथा विनम्रता के साथ गिड़गिड़ा कर प्रभु ईश्वर से दया की याचना करता है। येसु कहता है कि वह फरीसी नहीं बल्कि यह नाकेदार पापमुक्त होकर अपना घर चला जाता है। ठीक से प्रार्थना करने के लिए हमें विनम्र बनना चाहिये।

संत याकूब के पत्र अध्याय 4 वाक्य 10 में प्रभु का वचन कहता है “प्रभु के सामने दीन-हीन बनें और वह आप को ऊँचा उठायेगा।” सूक्ति -ग्रन्थ अध्याय 3 वाक्य 34 में पवित्र वचन कहता है “प्रभु घमण्डियों को नीचा दिखाता और दीनों को अपना कृपापात्र बना लेता है।” मरिया गान (लूकस 1:52) में माता मरियम कहती है “उसने शक्तिशालियों को उनके आसनों से गिरा दिया और दीनों को महान् बना दिया है”। आशीर्वचन (मत्ती 5: 3-4) में प्रभु येसु कहते है, “धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते है! स्वर्गराज्य उन्ही का है। धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।“ संत मत्ती के सुसमाचार अध्याय 23:12 में प्रभु कहते हैं, “जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा। और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।”

इन सब वचनों से हम यह सीखते हैं कि प्रभु ईश्वर से आशिष पाने के लिए हमें विनम्र बनना चाहिये। जो हृदय से विनीत और दीन-हीन हैं, उनकी प्रार्थनाओं को ईश्वर अवश्य ही स्वीकार करते है। इसलिए संत पेत्रुस अपने पहले पत्र अध्याय 5 वाक्य 6 में हमसे अनुरोध करते है “आप शक्तिशाली ईश्वर के सामने विनम्र बने रहें, जिससे वह आप को उपयुक्त समय में ऊपर उठाये।”

अब हमारे मन में कुछ प्रश्न उठ सकते हैं। क्या हम गर्व के साथ प्रभु के सामने अपने किये हुए सभी कार्यों को लेकर अपने आप की बढ़ाई कर सकते हैं? क्या हम उस फरीसी के समान घमंड करते हैं? हमें विनम्र होकर, नाकेदार के समान बनकर अपनी पापमुक्ति के लिए प्रार्थना करना चाहिए। आईए, हम मन ही मन इन प्रश्नों का जवाब ढूँढें तथा प्रभु से दया की याचना करें।