stanislaus_lakra

चक्र- स – सामान्य काल का उन्तीसवँ इतवार

निर्गमन 17: 8-13, 2 तिमिथी 3:14-4: 2, लुक्स 18:1-8

ब्रदर स्तानिसलास लकडा (अम्बिकापुर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्रिय माता -पिताओं और भाईयो एवं बहनों, आज के पाठ का मुख्य विषय ईश्वर का सामर्थ तथा विजय प्राप्त करना हैं। निर्गमन ग्रंथ में हम देखते हैं कि मूसा ईश्वर से सामर्थ पाकर इस्राएलियों का नेतृत्व करते हुए, उन्हें कनान देश की ओर ले जा रहा है। मार्ग में इस्राएलियों का उस आस-पास के निवासियों के साथ विवाद अर्थात लड़ाई हो जाया करता है। आज के पाठ में भी कुछ इसी प्रकार की घटना का वर्णन देखने को मिलता है - अमालेकियों की इस्राएलियों के साथ लडाई। मूसा ने योशुआ को आदेश दिया कि अपने लिए आदमी चुन लो और बाहर जाकर अमालेकियों से लड़ाई करो। और मैं ईश्वर का डंडा लिए पर्वत पर खड़ा रहूंगा। यह डण्डा वही है जिससे वह लाल समुद्र को दो भागों में विभाजित किया और चट्टान से पानी निकाला था। यहाँ उसी डण्डे की बात हो रही हैं जिससे कई चमत्कार दिखाकर मूसा ने इस्राएलियों को मिस्र देश से बाहर निकाला था।

आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि जब-जब मूसा अपना हाथ ऊपर उठाए रखता है, तब तक इस्राएली आमालेकियों के विरुद्ध विजय प्राप्त करते हैं। और जब-जब मूसा अपना हाथ नीचे करता है, इस्राएली हार का सामना करते हैं। यह इसलिए हुआ कि ईश्वर ने मूसा को सामर्थ प्रदान किया था। यहाँ हम यही पाते हैं कि ईश्वर अपनी चुनी हुई प्रजा को कभी नहीं छोड़ता और जो भी ईश्वर के विरुद्ध और चुनी हुयी प्रजा के विरुद्ध खड़ा होता है, वह टिक नहीं सकता है। निर्गमन ग्रंथ के लेखक 17:16 में हमें यह बताते हैं कि ईश्वर ने यह शपथ खाई है कि, वह हमेशा अमालेकियों से पीढ़ियों तक लड़ाई करता रहेगा। अर्थात आपनी चुनी प्रजा के शत्रुओं के विरूध्द वह हमेशा खडा रहेगा।

प्रिय भाइयो और बहनों, यह बात केवल ईश्वर से प्राप्त सामर्थ्य और लाठी की बात नहीं थी। लेकिन यहाँ ईश्वर की आज्ञाओं और उससे प्रार्थना में जुडे रहने की बात भी है। यहाँ हम देखते हैं कि किस प्रकार मूसा हमेशा ईश्वर के वचनों तथा आज्ञाओं का पालन करते हुए प्रार्थना में उससे जुडा रहा और विजय प्राप्त करता रहा। आगे हम पाते हैं कि जब मूसा थक कर अपना हाथ नीचे करता था, तब हारून और हूर मूसा के हाथ ऊपर उठाएं रखते थे। इस प्रकार से वे युद्ध में विजय हांसिल कर लेते हैं। यहाँ हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि हम ईश्वर के वचनों तथा आज्ञाओं का पालन करते हुए हमेशा प्रार्थना में ईश्वर से जुडे रहें जिससे हम किसी भी प्रकार के विकट संकट में भी विजय प्राप्त कर सकते हैं।

आज के इस आधुनिक समाज में ख्रीस्तीय जीवन चारों ओर से असंख्य संकट से घिरा हुआ है। और हमारे अंतरतम में हमेशा युद्ध होते रहते हैं। यदि हम गौर से अपने जीवन में झांक कर देखें, तो, यह देखने को मिलेगा कि, हमारे जीवन में कई लड़ाईयाँ होती रहती हैं, जैसे अहंकार और विनम्रता के बीच, लोभ और उदारता के बीच, सुस्तीपन ओर उत्साह के बीच, ईष्या और भ्रातृप्रेम के बीच। ऐसे कई युद्ध होते रहते हैं। तो हम इस घड़ी में कैसे सुलूक करते हैं। क्या हम मूसा की तरह प्रार्थना में बने रहते हैं?

इसी बात की पुष्टि आज के पवि़त्र सुसमाचार में है - एक नास्तिक न्यायकर्ता और चिड़चिड़ी विधवा का चित्रण जिसमें हमें बताया गया हैं कि एक विधवा औरत का पल्ला एक एैसे न्यायकर्ता के साथ पड़ जाता है जो ना तो ईश्वर से डरता है, और ना ही किसी बात की परवाह करता है। वह स्त्री इतनी गरीब और निस्सहाय थी कि, वह घूस देने या न्यायकर्ता को अपने वश में करने के लिए सक्षम नहीं थी। उसके पास मात्र एक ही रास्ता बच गया था - रोज निंरतर जाकर गिडगिडाना, अज्जी -विनती करना और उस स्त्री ने यही किया। डाँट-फटकार सूनने के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारी। आखिर में परेशान होकर न्यायकर्ता ने उसे न्याय दिला दिया।

ख्रीस्त में प्रिय माता पिताओं और भाइयों एवं बहनों, इस दृष्टान्त को सुनाने के बाद येसु साफ साफ सीखाते हैं कि जब ईश्वर के चुने हुए लोग दिन रात उसकी दुहाई देते हैं, तब वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। संत पौलूस एफेसियों के पत्र 6:18 में कहते हैं, “आप हमेशा आत्मा में सब समय प्रार्थना तथा निवेदन करते रहे”। हमें जीवन में हर पल प्रार्थना करनी चाहिए। जो भी ईश्वर पर भरोसा रख कर कुछ भी मांगता है वह जरूर प्राप्त करता है।

तो आइये हम इसी विश्वास के साथ प्रभु के पास अपनी माँग रखें और प्रार्थना करें। विशेष कर उस विधवा महिला से सीख ग्रहण करें, जैसे वह अपनी मांग में इतनी मजबूत थी कि वह उस अन्यायी न्यायकर्ता से भी न्याय प्राप्त कर लेती है। उसी प्रकार हम भी अपनी मांग में दृढता रखें। हमारा प्रेमी पिता जो अपने वचन के पक्के हैं, वे आवश्य हमारी प्रार्थना एवं आवश्कताएं पुरी करेंगे।

आज के पाठों से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हममें धैर्य एवं स्थायी दृढता होनी है। और ईश्वर के वचनों और आज्ञाओं का पालन करते हुए और लगातार प्रार्थना करते हूए हमें ईश्वर से जुडे रहना है। तो आईये अपने जीवन में हमेशा दृढतापूर्वक एवं धैर्यवान बनकर लगातार प्रार्थना करते रहें।