jaiman_kerketta

चक्र- स – सामान्य काल का आट्ठाईसवाँ ईतवार

2 राजाओ 5:14-17; 2 तिमथी 2:8-13; लूकस 17: 11-19

ब्रदर जयमन केरकेट्टा (पोर्ट ब्लेयर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में मेरे प्यारे भाइयों और बहनों कृतज्ञता एंव धन्यवाद की अभिव्यक्ति महापुरूषों का एक विशेष लक्षण है। सभी व्यक्तियों में ऐसे गुण की आशा रखना व्यर्थ है। जिसका हृदय सरल, स्वच्छ एवं विनम्र हो उसी के मुख से कृतज्ञता अथवा आशीर्वाद के शब्द अच्छे लगते हैं। यदि किसी व्यक्ति के विचार, कर्म, आचरण और स्वाभाव द्वारा अन्य व्यक्ति के दिल या मन में संतुष्टि होती है तो उसके मुख से स्वतः शुक्रिया या धन्यवाद के शब्द उभर आते हैं।

आज के सभी पाठ हमें इस सत्य से अवगत कराते हैं कि हमारी मनोवृत्ति ईश्वर तथा लोगों के प्रति धन्यावाद तथा कृतज्ञता प्रकट करने की होनी चाहिए। पहले पाठ में नबी एलीशा नामान को कोढ़ से शुद्ध करते हैं। एलीशा के आदेशानुसार नामान ने यर्दन नदी में जाकर डुबकी लगायी और उसका शरीर छोटे बालक के शरीर की भाँति निर्मल और स्वच्छ हो गया। परिणामस्वरूप नामान सच्चे ईश्वर पर विश्वास करने लगा। जब नामान नबी एलीशा को धन्यवाद देने के लिए लौटा तो नबी एलीशा ने कहा, “उस प्रभु की शपथ जिसकी मैं सेवा करता हूँ, मैं कुछ भी स्वीकार नहीं करूँगा।’ एलीशा को नामान की कृतज्ञता एवं एहसान की आवश्यकता नहीं थीं, क्योंकि वह नबी था परन्तु नामान ने एक परदेशी होने पर भी अपने ऊपर किये गये एहसान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना अपना फर्ज समझा।

आज के सुसमाचार में ठीक इसी प्रकार की घटना को प्रस्तुत किया गया है। येसु ख्रीस्त से चंगाई प्राप्त करने के बाद नौ कोढ़ी येसु को धन्यवाद देने की जरूरत न समझकर अपनी राह पर चले जाते हैं किन्तु एक कोढ़ी ने अपने कृतज्ञ हृदय से धन्यवाद के उदगार प्रकट किया।

जिस प्रकार समाज में आज वर्ण-भेद तथा जाति की भावना व्याप्त है, उससे भी कहीं अधिक येसु के समय में विद्यमान थी। यहूदी लोग अपने आपको ईश्वर की चुनी हुई प्रजा समझते थे, जबकि समारी लोगों को मिश्रित जाति के होने के कारण छोटा या तुच्छ समझा जाता था। यहूदी लोग कोढ़ से ग्रस्त लोगों को मृत व्यक्ति के समान समझते थे। येसु उन्हें चंगा करते है। फिर भी उन नौ कोढ़ियों के मन में धन्यवाद की भावना उत्पन्न नहीं होती है। समारी जो यहूदियों की नज़रों में तुच्छ माना जाता था वह ईश्वर के अनुपम वरदान को एहसास करके प्रभु को धन्यवाद देने के लिये आता है।

ईश्वर हर दिन हमें नया जीवन देता है और बहुत से वरदान भी देता है। क्या हम ईश्वर के उन सभी वरदानों के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते है? जैसे संत पौलुस थेसलनीकियों को अपने पहले पत्र में कहते हैं ‘‘सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें: क्योंकि ईसा मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है’’ (1 थेसल 5: 16-18)।

आज का सुसमाचार का मूल बिन्दु या सारांश यह है कि हमारे प्रति ईश्वर का प्रेम असीम है, इसलिए वे हमारे दैनिक जीवन को असंख्य वरदानों से भर देते है। अतः हमें उनके सभी वरदानों के लिए ईश्वर को कृतज्ञ दिल से धन्यवाद देना चाहिए, जिस प्रकार समारी ऊँचे स्वर से ईश्वर की स्तुति एवं धन्यवाद करते हुए ईसा को सारे हृदय से धन्यवाद करते हुए ईसा के चरणों में मुँह के बल गिर पड़ा। तो आईए, आज के इस मिस्सा बलिदान को सारे हृदय से धन्यवाद स्वरूप ईश्वर को चढ़ायें जो कि कृतज्ञता प्रकट करने का सर्वोत्तम माध्यम है।