surendre_kumre

चक्र- स – सामान्य काल का सत्ताईसवॉ ईतवार

हबक्कूक 1:2-3, 2:2-4, 2तिमथी 1:6-8,13-14, लूकस 17:5-10

ब्रदर सुरेन्द्र कुमरे (जबलपूर धर्मप्रान्त)


सुसमाचार में हम पाते हैं कि शिष्य प्रभु येसु से कुछ चीजें माँगते हैं। लूकस रचित सुसमाचार अध्याय 11:1 में शिष्य प्रभु येसु से कहते हैं “प्रभु! हमें प्रार्थना करने सिखाइए।“ योहन 14:8 में शिष्य कहते हैं “हमें पिता का दर्शन कराइए।“ और आज के सुसमाचार में शिष्य कहते हैं “प्रभु! हमारा विश्वास बढ़ाइए।”

विश्वास और कृपापात्र ये दो अवधारणाएं मानव जीवन से जुडी हुई हैं। ये ईश्वर और मनुष्य के रिश्तों में अहम भुमिका निभाती हैं। ये कुछ मायेनों में परस्पर सम्बध रखते हैं। मनुष्य का विश्वास वह है जो मनुष्य की आस्था पर निर्भर करता है और कृपापात्र ईश्वर की विश्वासनियता पर निर्भर करती है। अर्थत विश्वास वह है जिसमें हम दुसरों के लिए श्रद्धा या आस्था प्रकट करते हैं और हम हमारे विश्वास के करण कृपापात्र कहलाये जाते हैं। तो आइए हम सबसे पहले मानव जीवन में विश्वास के प्रभाव को समझने की कोशिश करेंगे।

एक पहाड़ी की चोटी में एक ऋषिमुनि की कुटिया थी। एक दिन जब वह अपने शिष्यों के साथ पहाड़ी से हो कर अपनी कुटिया जा रहा था, तब उनके शिष्यों ने उन से पूछा, “गुरुजी! क्या आपको भय नहीं कि आप यहाँ से गिर सकते हैं? तब गुरु ने शिष्य से कहा तुम में से कोई मुझे यहाँ से धक्का दे दो। तब शिष्यों ने कहा हम ऐसा नहीं कर सकते। इस पर गुरु ने उत्तर दिया “जब तुम मनुष्य होकर ऐसा नहीं कर सकते हो, तो वह ईश्वर हो कर हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकता है? ईश्वर जो हमारी देखरेख करता है, वह हमें यहाँ से गिरकर कभी मरने नहीं देगा। इस प्रकार शिष्यों ने ईश्वर के प्रति गुरु की विश्वसनीयता पर अमल किया।

प्रिय भाइयो एवं बहनो, भय में एक विश्वास होता है। जब एक मनुष्य अंधियारे में लड़खड़ाता है या पानी में डूबता है तब उसके अंदर एक विश्वास रहता है, कि उसके लिए आगे कोई है, जो उसे बचा सकता है। आज के पाठों में भी विश्वास के विषय में दो लोगों का चित्रण किया गया है। पहले पाठ में नबी हबक्कूक है, जिसके पास बहुत सारी समस्याएं हैं और वह अपनी समस्याओं को प्रभु ईश्वर को सुनाने लगता है। प्रभु ईश्वर उनकी समस्या को सुनता है और अपने वचनों के द्वारा उसे विश्वास दिलाता है। ईश्वर कहता है “जो धर्मी है वह अपने विश्वास के कारण सुरक्षित रहेगा और जो दुष्ट है वह नष्ट हो जायेगा।” नबी हबक्कूक ईश्वर में विश्वास करता है। आज के दूसरे पाठ में हम देखते हैं कि संत तिमथी अपने प्रेरिताई कार्य में लोगों के द्वारा अनेकों प्रकार की कठिनाइयां और समस्याओं का सामना कर रहा था। तब संत पौलूस उन्हें पत्र लिखकर ढाढस बंधाते हैं और कहते हैं “मसीह के प्रति विश्वास और प्रेम में दृढ बने रहो।” इस प्रकार वह प्रभु येसु मसीह में विश्वास करता है। आज के सुसमाचार में विश्वास को खुले तौर पर उजागर किया गया है, जहां प्रेरित स्वयं सामने आकर विश्वास के विषय में पूछते हैं। वे प्रभु येसु से कहते हैं, “हमारा विश्वास बढ़ाइए”। यह निवेदन सुन कर हमें लगेगा कि उनके अन्दर विश्वास तो था, परन्तु कम था; इसलिए तो वे प्रभु से विश्वास बढ़ाने की बात करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप से कोई व्यक्ति कहे, “हे भाई! पंखे की स्पीड थोड़ी बढ़ा दीजिए”, तो यह स्पष्ट है कि पंखा चालू है, परन्तु स्पीड़ कम है। यदि पंखा बंद है तो वह कैसे कह सकता है कि पंखे की स्पीड बढ़ा दीजिए। जवाब में प्रभु कहते हैं, “यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम शहतूत के इस पेड़ से कहते, ‘उखड़ कर समुद्र में लग जा’, तो वह तुम्हारी बात मान लेता।” प्रभु शायद यह कह रहे थे कि तुम विश्वास बढ़ाने की बात तो करते हो, बल्कि तुम्हारे अन्दर राई के दाने के बराबर भी विश्वास नहीं है। शिष्यों में विश्वास नहीं था। इसलिए प्रभु येसु उन्हें ”रे अल्पविश्वासी“ कहते हैं (मत्ती14:31)। जी हाँ उनमें विश्वास नही था इसलिए वे लोगों को चंगा करने में असमर्थ हो जाते थे (मत्ती 17:16)। जी हाँ उनमें विश्वास नहीं था इसलिए प्रभु येसु उनसे कहते हैं ”यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता तो तुम इस पेड़ से कहते उस पार लग जाए और वह तुम्हारी बात मान लेता।” इसलिए उन्हें एहसास होता है कि उनमें विश्वास की कमी है। इसीलिए वे प्रभु येसु से मांग कर रहे हैं।

प्रभु येसु उन्हें एक सेवक का उदाहरण देखकर बताते हैं कि जिस तरह एक सेवक सब कुछ भूल कर अपने स्वामी की सेवा करता है, उसी तरह उनके शिष्यों को सब कुछ भूल कर विश्वास को महत्व देना चाहिए। एक सेवक हर समय, हर पल कैसे तैयार रहता है! वह अपने स्वामी के लिए खाने-पीने से लेकर हर चीज की पूर्ति करता है। इस प्रकार वह सेवक अपने स्वामी का कृपापात्र बन जाता है। उसी तरह एक शिष्य को विश्वास में हर समय तैयार रहना है और अपने विश्वास की पूर्ति के लिए हर संभव प्रयास करते रहना चाहिए। प्रभु येसु यही चाहते थे कि शिष्य भी ईश्वर के कृपापात्र बनें। इब्रानियों 11:6 मैं पवित्र वचन कहता है, “विश्वास के अभाव में कोई भी ईश्वर का कृपापात्र नहीं बन सकता”।

बाइबिल भी हमारे सामने विश्वास के बारे में कितने लोगों का उदाहरण प्रस्तुत करती है, जो विश्वास के कारण ईश्वर के कृपा पात्र थे। इब्रानियों के पत्र 11:1... में पवित्र वचन कहता है कि विश्वास के कारण ही हमारे पूर्वज ईश्वर के कृपापात्र बने। विश्वास के कारण ही हाबिल ने काईन की अपेक्षा श्रेष्ठ बलि चढ़ाई। विश्वास के कारण ही नूह अपने परिवार को बचा पाया। विश्वास के कारण ही इब्राहीम ने ईश्वर का बुलावा स्वीकार किया। विश्वास के कारण ही उम्र ढल जाने पर भी सारा गर्भवती हो गई। विश्वास के कारण ही जोसेफ मिस्र देश में एक गुलाम से अधिकारी बन गया। विश्वास के कारण ही मूसा के माता पिता ने उसे नील नदी में छोड़ दिया और विश्वास के कारण ही वही इंसान एक दिन लाल सागर को दो भागों में बांट दिया। विश्वास के कारण ही इस्राइलियों ने प्रतिज्ञात देश को प्राप्त किए। विश्वास के कारण ही रहाब, जो एक वेश्या थी आविश्वासियों के साथ नष्ट होने से बच गई। गिद्दीऑन, बराक, सैमसन, राजा दाऊद, सुलेमान ये सब क्या ईश्वर के कृपा पात्र नहीं थे। जब विश्वास कि साक्षी इतनी बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर विद्यमान हैं, तो हमें पाप में नहीं बल्कि ईसा में दृष्टि लगाकर धैर्य के साथ आगे बढ़ते जाना है क्योंकि प्रभु येसु ही हमारे विश्वास के प्रवर्तक हैं (इब्रानियों 12:1-2)।

प्रिय भाइयों एवं बहनों, क्या हमारा विश्वास ईश्वर में मजबूत है? यदि नहीं तो हमें भी प्रभु येसु “रे अल्पविश्वासी“ कह कर बुला सकते हैं या फिर हमें भी कह सकते हैं यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर होता.....। यहां पर हमें मनन चिंतन करने की जरूरत है।

रोमियों 3:25 में पवित्र वचन कहता है “ईश्वर ने चाहा कि ईसा अपना रक्त बहाकर पापों का प्रायश्चित करें और हम विश्वास द्वारा उसका फल उत्पन्न करें।” ईश्वर चाहते हैं कि हम विश्वास द्वारा फल उत्पन्न करें 60 गुना 70 गुना 100 गुना। संत थॉमस भी जीवित प्रभु येसु में विश्वास नहीं कर पा रहा था। परंतु जब उन्होंने अपनी आंखों से प्रभु के घावों को देखा, तब उनका विश्वास एक चट्टान की तरह मजबूत हो गया और उसी विश्वास के कारण वे भारत आ पाऐ। उसी विश्वास के कारण भारत की कलीसिया में आज बहुत से संत हैं। ये संत भारत की कलीसिया के विश्वास के फल हैं। तो आइए हम भी प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करें, “प्रभु हमारे विश्वास को बढ़ाईए” और विश्वास के द्वारा ईश्वर के कृपापात्र बनें और अपने अच्छे फल उत्पन्न करें।