sabin

चक्र- स – सामान्य काल का छब्बीसवाँ ईतवार

अमोस का ग्रंथ 6:1, 4-7, 1 तिमथी 6:11-16, संत लूकस 16:19-31

ब्रदर सहाय सबिन (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


सूक्ति ग्रंथ 10:22 कहता है, प्रभु के आशीर्वाद से ही कोई धनवान बनता है। तेजी से बढ़ती हुई दुनिया में, हर एक मनुष्य धन और सम्पति के पीछे भागता है। इस आधुनिक दुनिया में जीने के लिए धन और सम्पति महत्वपूर्ण है। लेकिन यह एक मात्र स्रोत नहीं है। धन और सम्पति के पीछे भागते समय मनुष्य को अपने भाईयों और बहनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी स्मरण करना चाहिए। येसु की दो सबसे बड़ी आज्ञाओं में से एक है - अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।

ईश्वर ने मनुष्य को धन और सम्पति इसलिए दिया है जिससे वह अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ दूसरों की सेवा करने के लिए उसका उपयोग कर सके। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि ईश्वर ने हमें और हमारे परिवार के सदस्यों के लिए ही धन दिया है, बल्कि उन्होंने इसलिए हमें धन दिया है कि हम उसी के उपयोग से दूसरों की भी मदद कर सकें।

आज के सुसमाचार के माध्यम से, येसु हम से कहते हैं कि हमें हर प्रकार के लालच को त्यागना चाहिए। प्रभु अमीरों के लालच तथा मूर्खता के बारे हमें चेतावनी देते हैं। अमीर आदमी सुखलोलुपता में जीवन बिताता है तथा अपने दरवाजे पर पड़े पीड़ित लाजरूस पर दया नहीं दिखाता है। एक दिन दोनों मर जाते हैं अमीर व्यक्ति और गरीब लाजरूस भी।

लाजरूस पिता इब्राहीम की गोद में आनंद मनाने लगता है, लेकिन अमीर व्यक्ति नरक में पीड़ा सहने लगता है। उस धनी मनुष्य को इस संसार में रहते समय काम करने की कोई जरूरत नहीं थी और उसके लिए सब कुछ व्यवस्थित किया गया था। वह प्रतिदिन राजसी और उत्तम मलमल के वस्त्र पहने हुए, और आनंद के साथ भोजन करता था। उसका जीवन खुशियों और आनन्द से भरा हुआ था। बेसहारे लाजरूस, उसके विपरीत भूखा, प्यासा तथा पीड़ित था। उन दोनों की मृत्यु के बाद, उनकी किस्मत पलट गई। लाजरूस आनंदित था जबकि अमीर आदमी दुखी।

सुसमाचार के दूसरे भाग में बताया गया है कि अमीर मनुष्य पिता इब्राहीम से निवेदन करता है कि आप लाजरूस को मेरे पिता के घर भेजिए ताकि वह मेरे पाँच भाईयों को चेतावनी दे। तब इब्राहीम उस से कहते हैं जो मूसा और नबियों की बात नहीं मानते हैं, वे मुर्दों में से कोई जी उठ कर उनके पास जाने पर भी वे पश्चाताप नहीं करेंगे। विधि विवरण ग्रंथ 30:11-14 हम पढ़ते हैं, “मैं तुम लोगों को आज संहिता दे रहा हूँ, वह न तो तुम्हारी शक्ति के बाहर है और न तुम्हारी पहुँच से परे है। यह स्वर्ग नहीं है जो तुमको कहना पड़े - कौन हमारे लिए स्वर्ग जा कर उसे हमारे पास लाएगा, जिससे हम उसे सुन कर उसका पालन करें ? और यह समुद्र के उस पार नहीं है, जो तुमको कहना पड़े - कौन हमारे लिए समुद्र पार कर उसे हमारे पास लाएगा, जिससे हम उसे सुन कर तुम्हारे पास ही है; वह तुम्हारे मुख और हृदय में है, जिससे तुम उसका पालन करो।”

जब हम धन और संपति को अधिक महत्व देते हैं, तो ईश्वर को महत्व नहीं दे पाते हैं। इसलिए प्रभु येसु कहते हैं, मती के सुसमाचार 6:24 में, “कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन - दोनों की सेवा नहीं कर सकते।”

मती के सुसमाचार 19:16-22 में हम पढ़ते हैं कि एक धनी युवक ने ईसा के पास आकर सवाल किया, “गुरूवर! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मैं क्या करूँ ?” प्रभु ने उत्तर दिया, “आज्ञाओं का पालन करो”। युवक ने कहा, “मैं इन सब आज्ञाओं का, अपने बचपन से पालन करता आया हूँ। तब प्रभु ने उस युवक से कहा, ‘‘यदि तुम पूर्ण होना चाहते हो, तो जाओ, अपनी सारी संपत्ति बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी। तब आकर मेरा अनुसरण करो।“ यह सुन कर, वह युवक बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।’’

टोबीत का ग्रन्थ 4:7-11 में हम पढ़ते हैं कि टोबीत अपने पुत्र टोबीयाह से कहता है, पुत्र अपनी संपत्ति के अनुसार दान दो। यदि तुम्हारे पास बहुत हो, तो अधिक दो; यदि तुम्हारे पास कम हो, तो कम देने में नहीं हिचकोगे। तुम्हारा यह दान विपत्ति के दिन तुम्हारे लिए एक अच्छी निधि प्रमाणित होगा। हर भिक्षादान सर्वोच्च प्रभु की दृश्टि में सर्वोत्तम चढ़ावा है।”

दूसरे पाठ में, संत पौलुस हमें बताते हैं कि हमें सांसारिक वस्तुओं को त्यागना चाहिए और धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य तथा विनम्रता की साधना करनी चाहिए। अर्थात, हमें स्वर्ग की ओर दृष्टि लगा कर आगे चलते रहना चाहिए।

हमें इस पृथ्वी पर नहीं, बल्कि स्वर्ग में सच्चा धन जमा करना है। जब हम स्वर्ग में हमारा धन जमा करते हैं तो न कोई चोर सेंध लगा कर चुरायेगा और न ही कोई कीड़ा खायेगा।

आइए हम ईश्वर से यह वरदान माँगे कि हम ईश्वर द्वारा बताये मार्गा पर चलें और अपने भाई-बहनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी निभाते रहें। आमेन।