michael

चक्र- स – सामान्य काल का पच्चीसवाँ रविवार

आमोस 8:4-7; 1तिमथी 2:1-8; लूकस 16:1-13

ब्रदर नीलकमल तिर्की (खंडवा धर्मप्रान्त)


हमारे जीवन में अक्सर हम देखते हैं कि अच्छे पद मिलने पर कुछ लोग उसका दुरुपयोग करते हैं, यहां तक कि वे अपने लिए संपत्ति एकत्रित करते हैं, वे अपने पद का गलत उपयोग करते हुए या मौज-मस्ती का जीवन-यापन करते हैं। लेकिन जब समय पूरा होने को रहता है या ट्रांसफर होने के लिए एक साल बाकी रहता हैं, या सेवानिवृत्त होने का समय आता है या चुनाव का समय आता है तब ये लोग बहुत अच्छी तरह से कार्य करने लगते हैं, और लोगों की नजर में अच्छा काम करते हैं ताकि लोग उनको याद करें और उनके कार्यों को साराहें ।

इसी प्रकार की घटना आज के सुसमाचार के पहले चरण में देखने को मिलता है, एक बेईमान कारिंदा, जो अपने मालिक की सम्पत्ति को अपने स्वार्थ के लिए उड़ाता है, मौज मस्ती में उस संपत्ति को खर्च करता है। जब लोग इसकी सूचना स्वामी को देते हैं तब स्वामी उनको बुलाते हैं और स्वामी बेईमान कारिंदा से कहते हैं, “यह मैं तुम्हारे विषय में क्या सुन रहा हूँ, अपनी करिंदागरी का हिसाब दो, क्योंकि तुम अब से कारिंदा नहीं रह सकते”। तब बेईमान कारिंदा सोचने लगता है अब मैं क्या करूं जिससे कि लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें। सन्त लूकस के सुसमाचार 16:9 में हम पढ़ते हैं “झूठे धन से अपने लिए मित्र बना लो जिससे उसके समाप्त हो जाने पर वे लोग परलोक में तुम्हारा स्वागत करें,” इस पूरे दृष्टांत का यही अर्थ है, कि जिस तरह बेईमान कारिंदा ने अपने आगामी जीवन के बारे में सोचा और उसके लिए कार्य करता रहा, उसी प्रकार इस संसार में रहते वक्त अपने आगामी जीवन के बारे हमें भी सोचना चाहिए। जो कुछ प्रभु ने हमें दिए हैं जैसे- बुद्धि, ज्ञान, समझदारी, विवेक, साथ में अपने जीवन चर्या के लिए धन संपत्ति - इन सब से हमें न केवल इस संसार में रहने के लिए सोचना है जैसे - कल क्या खाऊंगा, क्या पहनूँगा आदि।

प्रभु येसु यह सिखाना चाहते हैं कि हम धन का उपयोग ईश्वर और पड़ोसियों की सेवा में करें। प्रभु येसु कहते हैं कि तुम ईश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते हो। वास्तव में हमें धन को एक साधन मात्र समझ कर उसे ईश्वर तथा अपने पड़ोसियों की सेवा में उपयोग करना चाहिए। तिमथी के नाम संत पौलुस का पहला पत्र 6:17-19 में सन्त पौलुस तिमथी से कहते हैं- “इस संसार के धनियो से अनुरोध करो कि वे घमंड न करें और नश्वर धन-संपत्ति पर नहीं, बल्कि ईश्वर पर भरोसा रखें, जो हमारे उपभोग कि सब चीजें पर्याप्त मात्रा में देता है। वे भलाई करते रहे, सत्कर्मों के धनी बनें, दानशील और उदार हों, इस प्रकार वे अपने लिए एक ऐसी पूंजी एकत्र करेंगे, जो भविष्य का उत्तम आधार होगी और जिसके द्वारा वे वास्तविक जीवन प्राप्त कर सकेंगे।”

सुसमाचार में प्रभु येसु लोगों को बार-बार याद दिलाते हैं कि धनियो का स्वर्ग में प्रवेश करना कठिन है बल्कि असंभव नहीं है। किसी को भी धन ईश्वर की कृपा से ही प्राप्त होता है, लेकिन अगर वह ईश्वर से प्राप्त उन वरदानो को ईश्वर की ही जगह देने लगता है तो वह पहली आज्ञा के विरुद्ध पाप करता है तथा मूर्ति-पूजक बन जाता है। विश्वासियों को चाहिए कि वे धन का सदुपयोग करें, धनी बनकर भी घमंडी ना बने, बल्कि ईमानदारी से धन का सही उपयोग करे, इसी ईमानदारी के संदर्भ में प्रभु कहते हैं, “जो छोटी-से-छोटी बातों में ईमानदार है, वह बड़ी बातों में भी ईमानदार है और जो छोटी-से-छोटी बातों में बेईमान है, वह बड़ी बातों में भी बेईमान है।" हमारे समाज में कुछ लोग कई बार छोटी से छोटी बातों में ईमानदार नहीं हैं, तो कैसे हम कह सकते हैं कि वे बड़ी-बड़ी बातों में ईमानदार रहेंगे। हम सोचते हैं कि अगर किसी से बिना बताए कुछ भी छोटी वस्तु लेते हैं, तो यह चोरी नहीं है। हम लोग सोचते हैं कि यह बहुत छोटी सी वस्तु थी। लेकिन यहाँ वस्तु की बातें नहीं हो रही है ईमानदारी और वस्तु का उपयोग करने की अनुमति की बातें चल रही है। क्योंकि अगर हम छोटी चीजों में ईमानदार नहीं है, तो बड़ी बातों में कैसे ईमानदार हो सकते हैं? प्रभु येसु हमको देखते हैं कि हम सब ईश्वर के पुत्र-पुत्रियाँ किस प्रकार छोटी से छोटी बातों में ईमानदार हैं या नहीं। अगर हम छोटी-सी-छोटी बातों में ईमानदार होने का प्रमाण नहीं दे पाते हैं, तो हम प्रभु से बड़ी जिम्मेदारी प्राप्त करने की आशा नहीं कर सकते हैं, हमें न केवल लोगों के सामने ईमानदार रहना चाहिए बल्कि हर कर्म में ईमानदार बनना चाहिए, जैसे हमारी प्रार्थना में, हमारे कामों में, हमारे बोलचाल में, हमारे रिश्तो में, हमारी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों में भी ईमानदार होना चाहिए। अगर हम छोटी बातों में ईमानदार होंगे, तभी प्रभु हमें बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां देंगें तथा हमारे जीवन को आशीषों से भर देंगे।

संत लूकस के सुसमाचार 19:17 में हम देखते हैं दस अशर्फियों प्राप्त करने पर और दस अशर्फियों कमाने वाले सेवक से स्वामी कहते हैं, “शब्बाश ईमानदार और भले सेवक। तुम छोटी से छोटी बातों में ईमानदार रहे, इसलिए तुम्हें दस नगरों पर अधिकार मिलेगा।” हमें प्रभु की आशिष पाने के लिए पूरा-पूरा ईमानदार होना चाहिए, न हीं हमारे मन में कपट की छोटी-बडी भावना हों। हमें जो भी कुछ जिम्मेदारियाँ दी जाती है, यह नहीं सोचना चाहिए, कि मेरा काम छोटा है या बड़ा, बल्कि पूरी ईमानदारी से हमें उन सभी कार्यों को पूर्ण करना चाहिए, जिससे प्रभु येसु हम सब को आशिषों से भर देंगें। पवित्र वचन कहता है समूएल का पहला ग्रंथ 26:23 में, “प्रभु हर एक को उसकी धार्मिकता तथा ईमानदारी का फल देगा।” सूक्ति ग्रंथ 28:20 “ईमानदार व्यक्ति को प्रचुर आशीर्वाद प्राप्त होगा।” जी हां प्यारे विश्वासियों भाईय –बहनों, अगर हम ईमानदार होंगे तब भी प्रभु येसु सब हमारे जीवन में भरपूर आशीषों से भर देंगे। हम सबको ईमानदार रहने के लिए प्रयत्न करना चाहिए, ना केवल पैसे के मामले में, परंतु हर मामले में जैसे-रिश्तेदारी निभाने में, अपने कर्तव्य के प्रति, अपनी पढ़ाई में, अपने आध्यात्मिक जीवन में, तथा सभी कामों में ईमानदार रहने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। हम लोग जानते हैं कि प्रयत्न करने से बहुत कुछ पूरा होता है, इसलिए हमें निरंतर ईमानदार रहने के लिए कोशिश करना चाहिए।

आज के पाठ से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि इस संसार में रहते वक्त प्रभु ने हमें जो वरदान के रूप में दिए हैं, उन सबके सहारे हमें निरंतर आगामी जीवन के बारे में सोचनी चाहिए, और पवित्रता तथा ईमानदारी का जीवन जीकर हमें ईश्वरीय कृपा की ओर आगे बढ़ते रहना चाहिए।