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चक्र- स – सामान्य काल का बाईसवाँ रविवार

प्रवक्ता 3:17-18,20,28-29; इब्रानियों 12:18-19, 22-24अ; लूकस 1:7-14

ब्रदर अतिस भुमिज मुंडा (आई.एम.एस)


जो प्रभु की शिक्षा से परिचित हैं उन्हें मालूम है कि प्रभु की शिक्षा के अनुसार हमें लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए धर्मकार्यों का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। हमें लोगों को नहीं बल्कि प्रभु को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए।

इस संबंध में हम देखते हैं कि मत्ती के सुसमाचार 6:1-2 में प्रभु कहते हैं “सावधान रहो। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिये अपने धर्मकार्यों का प्रदर्शन न करो, नहीं तो तुम स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे। जब तुम दान देते हो, तो इसका ढिंढ़ोरा नहीं पिटवाओ।” वे चाहते हैं कि हमारा दान गुप्त रहें। इसी प्रकार प्रभु कहते हैं कि हमें अपने कमरें में जा कर द्वार बंद कर एकान्त में अपने पिता से प्रार्थना करना चाहिए। प्रभु की इच्छा यह है कि हम दूसरों से प्रशंसा पाने के लिए प्रार्थना न करें। उसी अध्याय में आगे प्रभु लोगों से उपवास करते समय ढोंगियों की तरह मुँह उदास या मलिन न बनाने को कहते हैं। प्रभु चाहते हैं कि हम दूसरों को दिखाने के लिए उपवास न करें। उनकी इच्छा है कि हम इस दुनिया में सम्मान और स्थान पाने की इच्छा न रखें, बल्कि स्वर्गराज्य में प्रवेश पाने की कोशिश करें।

आज के सुसमाचार में हम सुनते हैं कि येसु एक प्रमुख फ़रीसी के यहां भोजन करने गए थे । वहाँ उन्होंने अतिथियों को मुख्य-मुख्य स्थान चुनते देख कर उन्हें दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि विवाह में निमंत्रित होने पर सबसे अगले स्थान पर मत बैठो। यह सब जानते हैं अतिथि मुख्य-मुख्य स्थानों पर इसलिए बैठ रहे थे कि वे अपने आपको दूसरों से बड़ा और प्रमुख साबित कर पायें। उन्हें पीछे बैठने में लज्जा महसूस होती थी। प्रभु येसु उनके मन की इसी भाव को दूर करने के लिए उन्हें बताते हैं कि जब तुम्हें निमंत्रण मिले तो जाकर सबसे पिछले स्थान पर बैठो जिससे निमंत्रण देने वाला तुम से आकर कहे बंधु आगे बढ़कर बैठिए। इस प्रकार सभी अतिथियों के सामने तुम्हारा सम्मान होगा। क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है वह छोटा बनाया जाएगा और जो अपने को छोटा मानता है वह बड़ा बनाया जाएगा। प्रभु की इस शिक्षा को स्वीकार करने के लिए यह ज़रूरी है कि हम विनम्र बनें।

प्रभु येसु चाहते हैं कि हम विनम्र बन कर अपने कर्तव्यों को निभाये, न कि इस दुनिया में दिखावे का जीवन बिता कर दूसरों की प्रशंसा पाने की कोशिश करें।

आज का सुसमाचार हमें विनम्र बनने के लिए और अपने को सेवक के समान छोटा बनाने के लिए प्रेरित करता है। एक सेवक जैसे बन कर अपने शिष्यों के पैर धोने के बाद प्रभु येसु योहन१३:१४ मैं अपने शिष्यों को एक महत्वपूर्ण शिक्षा देते हुए कहते हैं, “तुम्हारे प्रभु और गुरु ने तुम्हारे पैर धोए हैं तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए”। हमें अपने प्रभु से इससे अच्छा उदाहरण कहां मिल सकता हैॽ

आज के सुसमाचार से यह भी व्यक्त होता है कि हमें अपने पद पर कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। हमारे पद ज़िम्मेदारियों को निभाने के अवसर हैं और हमें नम्रतापूर्वक और सेवा-भाव से उन्हें निभाना चाहिए। हममें से कई लोग भी बड़े-बड़े पदों पर दूसरों से आदर और सम्मान पाना चाहते हैं तथा अपना अधिकार जमा कर दूसरों को अपने इशारे पर नचाना चाहते हैं।

परन्तु प्रभु हमसे कहते हैं हमारे बीच ऐसी बात नहीं होनी चाहिए । चाहे हम किसी भी पद पर क्यों ना हो हमें लोगों की सेवा के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

फिलिप्पियों २:६-७ में पवित्र वचन प्रभु येसु के बारे में कहता है, “वह वास्तव में ईश्वर थे और उनको पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्य के समान बनकर अपने को दीन हीन बना लिया।” इसलिए पिता ईश्वर ने उन्हें महान बनाया। जब हम प्रभु के सामने दीन-हीन बनेंगे, छोटे बनेंगे तो हमें भी स्वर्ग राज्य में बड़ा बनाया जाएगा। आज के पाठ हम से यही कहना चाहते हैं कि हमें दुनिया की नजरों में नहीं बल्कि प्रभु येसु के नजरों में बड़ा बनना चाहिए। प्रभु के नजरों में बडे बनने के लिए हमें इस दुनिया में विनम्रता का जीवन जीना चाहिए।

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु और एक बात लोगों के सामने रखते हैं। वे कहते हैं कि भोज देते समय हमें उन रिश्तेदारों, पडोसियों तथा धनियों को निमन्त्रण नहीं देना चाहिए जो हमें अपने घर में भोज पर बुला कर बदला चुका सकेंगे, बल्कि उन लूलों, लंगडों तथा कंगालों को भोज पर बुलाना चाहिए जो अपने घर पर भोज में हमें निमन्त्रण देकर बदला नहीं चुका पायेंगे। कंगाल लूले और अंधे सम्मान के भूखे नहीं होते वे अन्न के भूखे होते हैं। उन भूखों को को खिला कर हम प्रभु को प्रसन्न कर सकते हैं।

सूक्ति ग्रन्थ 19:17 में पवित्र वचन कहता है, “जो दरिद्रों पर दया करता है, वह प्रभु को उधार देता है प्रभु उसे उसके उपकार का बदला चुकायेगा”। पहले पाठ में भी हम सुनते हैं, “तुम जितने अधिक बड़े हो, उतने ही अधिक नम्र बनों इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे”। आइए हम आज प्रभु से आशीष मांगे कि हम नम्रता पूर्वक दीन दुखियों की सेवा करें और योहन बपतिस्ता के समान कह सकें, “वह बढ़ता जाये, मैं घटता जाऊँ”।