इसायाह 66:18-21, इब्रानियों 12:5-7, 11-13, लूकस 13:22-30
आज के सुसमाचार में हम प्रभु कि शिक्षा के बारे में सुनते हैं जब प्रभु गाँव-गाँव, नगर-नगर उपदेश देते हुए येरूसालेम जा रहे थे। उनके साथ बहुत सारे लोग थे। उन लोगों में से किसी एक ने पूछा, “प्रभु, क्या थोडे़ ही लोग मुक्ति पाते हैं?” इस व्यक्ति के मन में ऐसा सवाल क्यों आया होगा? उसने प्रभु से यह प्रश्न क्यों पूछा होगा? क्योंकि प्रभु की शिक्षाएँ कठिन हैं। अगर मुक्ति पाने के लिए प्रभु की शिक्षाओं का पालन करना पडेगा, तो थोडे ही लोग मुक्ति पा सकेंगे। प्रभु कहते हैं कि जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो लें। अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो और जो कुछ आप के पास है उसे बेच कर गरीबों में बाँट दो। योहन 6:60 में हम सुनते हैं कि उनके बहुत से शिष्यों ने उनकी शिक्षा सुना और कहा कि यह कठोर शिक्षा है; इसे कौन मान सकता है? जो लोग प्रभु के साथ थे उनको भी उनकी शिक्षा बहुत कठिन लगी। योहन 6:51 में हम प्रभु कहते हैं, “स्वर्ग से उतरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई वह रोटी खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। जो रोटी में दूँगा, वह संसार के लिए अर्पित मेरा मांस है।” प्रभु की शिक्षा सुनने वालों को वह कठोर लगी। वे पूछने लगे कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का मांस को कैसे खा सकता है। दूसरी जगह पर प्रभु कहते हैं कि आप को संकरे द्वार से प्रवेश करना है; और बहुत सारे लोग इस के लिए प्रयास करेंगे परन्तु सब के सब प्रवेश नहीं कर पायेंगे। मत्ति 7:21 में प्रभु कहते हैं, “जो मुझे प्रभु प्रभु कह कर पुकारते हैं उन सब में से भी सब के सब स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है वही स्वर्ग राज्य में प्रवेश करेगा।” इन सब बातों से हमें पता चलता है कि प्रभु येसु की शिक्षा पर चल कर मुक्ति पाना आसान नहीं है। इसी कारण उस व्यक्ति ने प्रश्न किया था, “प्रभु, क्या थोडे़ ही लोग मुक्ति पाते हैं?”
हम लोग रोज पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग लेते है प्रार्थना करते है कई प्रकार की धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं और ईश्वर को प्रभु प्रभु कह कर पुकारते हैं। क्या आपलोग सोचते है कि ऐसा करने से हम स्वर्ग राज्य में प्रवेश कर पायेंगे? शायद नहीं। क्योंकि हमें इन सब गतिविधियों में भक्ति भाव से भाग लेना जरूरी है। अधिकतर हम क्या करते है मिस्सा शुरू होने के बाद आते है कभी पाठ पढ़ते समय, तो कभी परमप्रसाद लेकर चले जाते है। कभी वर्श में एक बार पापस्वीकार, और एक दो बार पवित्र मिस्सा बलिदान में भाग ले लेते है। क्या वास्तव में ये भक्ति हमें स्वर्गराज्य में प्रवेश करने देगी?
जवाब में प्रभु ने कहा, “सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ - प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे।” उस व्यक्ति का सन्देह सच्च निकला। प्रभु ने साफ कर दिया कि स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए बहुत परिश्रम करना पडेगा। प्ररित चरित 14:22 में हम देखते हैं कि बरनाबास और पौलुस, “शिष्यों को ढ़ारस बांधाते और विश्वास में दृढ़ रहने के लिए अनुरोध करते हैं कि हमें बहुत सारे कष्ट सहकर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।” वास्तव में प्रभु के राज्य में प्रवेश करने के लिए हमें बहुत सारी कठिनाईयों और समस्याओं का सामना करना होगा।
आगे प्रभु यह भी कहते हैं कि द्वार बंद होने से पहले हमें प्रवेश कर लेना चाहिए। यहाँ प्रभु स्वर्ग के द्वार की बात करते है। हमें हर समय, अभी और इस वक्त भी तैयार रहना है क्योंकि हमें नहीं पता कि हमारा बुलावा कब आ जाये। हमें कभी ऐसा नहीं सोचना चाहिए की मेरी उम्र 25 वर्ष य 20 वर्ष की है तो अभी बहुत समय बाकी है। हमें यह पता नहीं है कि हमारी मृत्यु कब होगी। इसलिए हमें हर समय तैयार रहना चाहिए।
प्रभु कहते है बहुत सारे लोग पूर्व और पश्चिम तथा उत्तर और दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगें। यहाँ प्रभु यही समझाते है कि जो लोग हमेशा प्रभु के साथ रहते हैं और उनका जयगान करते है उनमें सब कोई प्रभु भोज में सम्मिलित नहीं हो सकेंगे। स्वर्गराज्य में प्रवेश करने के लिए सच्चे मन और हृदय की जरूरत है, सच्चे विश्वास और प्रभु की शिक्षाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। तभी हम प्रभु के राज्य में प्रवेश कर पायेंगे। आइए हम सब मिलकर सच्चे हृदय से प्रभु की शिक्षाओं का पालन करने की कोशिश करें।