यिरमियाह 38:4-6, 8-10; इब्रानियों 12:1-4; लूकस 12:49-53
आज के सुसमाचार में प्रभु कुछ ऐसी बातें करते हैं, जिन्हें समझना उतना आसान नहीं है। प्रभु कहते हैं, “मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे!” निर्गमन ग्रन्थ, अध्याय 3 में हम देखते हैं कि प्रभु ईश्वर ने जलती हुयी झाड़ी में मूसा को दर्शन दिये। उन्होंने अपने आप को आग के रूप में प्रकट करना चाहा। जब बिजली का आविष्कार नहीं हुआ था, तब लोग प्रकाश के लिए भी आग जलाते थे। इस प्रकार आग ज्योति का भी प्रतीक है। आग अंधेरे को दूर करती हैं और चारों ओर उजाला फैलाती है। आज भी आग को हम महत्व देते हैं। धातुओं को पिघलाने और ढालने के लिए हमें आग की आवश्यकता होती है। भोजन पकाने में भी आग का उपयोग होता है।
नबी इसायाह के ग्रन्थ के अध्याय 6 में हम पढ़ते हैं कि नबी कहते हैं, “मैं अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूँ और अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों के बीच में रहता हूँ”। इस पर एक सेराफीम चिमटे से वेदी पर से अंगार उठा लेते हैं और उससे नबी के होंठों को स्पर्ष करते हुए कहते हैं, “देखिए, अंगार ने आपके होंठों का स्पर्श किया है। आपका पाप दूर हो गया और आपका अधर्म मिट गया है।”
प्रभु येसु हमारे जीवन को प्रकाशित करने वाली, हमारे पाप दूर करने वाली और हमारे अधर्म मिटाने वाली आग है। पवित्र मिस्सा बलिदान की वेदी पर से वे हमें परमप्रसाद के अंगार से स्पर्ष कर हमारे पापों को दूर करते हैं तथा हमारे अधर्म मिटा देते हैं। इसलिए प्रभु येसु कहते हैं कि मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ।
आज के सुसमाचार में आगे प्रभु येसु कहते हैं, “मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!” आज का सुसमाचार संत मत्ती के सुसमाचार के अध्याय 12 से लिया गया है। यहाँ पर प्रभु येसु बपतिस्मा लेने की बात क्यों करते हैं, जबकि संत मत्ती के ही सुसमाचार के अध्याय 3 में प्रभु येसु के बपतिस्मा लेने की घटना का विवरण है। क्या वे दूसरी बार बपतिस्मा लेंगे? जी हाँ, वे दूसरी बार बपतिस्मा लेंगे। पहले उन्होंने पानी का बपतिस्मा लिया था, अब वे क्रूस पर खून का बपतिस्मा लेने वाले हैं। संत मारकुस 10:38 में प्रभु येसु ज़बेदी के पुत्र, याकूब और योहन से प्रश्न करते हैं, “जो प्याला मुझे पीना है, क्या तुम उसे पी सकते हो और जो बपतिस्मा मुझे लेना है, क्या तुम उसे ले सकते हो?” इस से हमें पता चलता है कि यहाँ पर प्रभु येसु क्रूस पर अपनी मृत्यु के बारे में कह रहे हैं। अपनी मृत्यु के द्वारा प्रभु येसु अपने प्रति तथा हमारे प्रति प्रेम का सबसे उत्तम प्रमाण हमें देते हैं। यर्दन नदी में प्रभु के बपतिस्मा के समय पिता ईश्वर ने कहा था, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, इस पर मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ”। अपने मृत्यु से वे पिता ईश्वर के परमप्रिय पुत्र होने का प्रमाण देना चाहते हैं। हमारे बपतिस्मा के समय पिता ईश्वर ने हमें अपने पुत्र-पुत्रियों का गौरव प्रदान किया है। हमें अपने जीवन तथा व्यवहार से ईश्वर की प्रिय सन्तान होने का प्रमाण देना चाहिए।
तीसरी बात जो आज के सुसमाचार में प्रभु कहते हैं, वह यह है – “क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।” इस कथन को भी समझना आसान नहीं है। प्रभु के जन्म के बारे में भविष्यवाणी करते हुए नबी इसायाह 9:5 में कहते हैं, “हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ है, हम को एक पुत्र मिला है। उसके कन्धों पर राज्याधिकार रखा गया है और उसका नाम होगा- अपूर्व परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, शाश्वत पिता, शान्ति का राजा।” प्रभु येसु शान्ति का राजा है। योहन 14:27 में प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते हैं, “मैं तुम्हारे लिये शांति छोड जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति-जैसी नहीं है।” प्रभु येसु हमें शान्ति प्रदान करने वाले शान्ति के राजकुमार है। लेकिन प्रभु के शान्ति के सन्देश को कुछ ही लोग ग्रहण करते है, दूसरे लोग उनका तिरस्कार करते हैं। इसी कारण प्रभु के सुसमाचार को स्वीकार करने वालों तथा उनका तिरस्कार करने वालों के बीच फूट उत्पन्न होता है। वे प्रभु के नाम को लेकर एक दूसरे के खिलाफ़ हो जाते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या हम प्रभु को स्वीकार करने वाले हैं, या अस्वीकार करने वाले? क्या हम उनकी शिक्षाओं में से अपनी पसन्द की कुछ शिक्षाओं को चुन कर केवल उन्हें स्वीकार करते हैं और बाकी का तिरस्कार करते हैं?
आईए हम आज और आनेवाले सप्ताह में इन बातों पर मनन करते हुए अपने जीवन को सुधारने की कोशिश करें। प्रभु हमें आशिष दें।