Manish_Khadiya

चक्र- स – वर्ष का सत्रहवाँ सामान्य इतवार

उत्पत्ति ग्रन्थ 18:28-32; कलोसियों 2:12-14; लूकस 11:1-13

ब्रदर मनीश खड़िया (झाबुआ धर्मप्रान्त)


प्रार्थना का प्रभाव

हम महान संत मोनिका के बारे में जानते हैं, जिसने अपनी प्रतिदिन की प्रार्थना से अपने पुत्र अगस्तिन को प्रभावित किया। अगस्तिन अपने युवावस्था में संसार के पापों में डूबा हुआ था। संत मोनिका 17 साल लगातार अपने पुत्र अगस्तिन के मन-परिवर्तन के लिए प्रार्थना करती है, और अगस्तिन अपना पापमय जीवन छोड़कर एक पुरोहित और बाद में बिशप बनता है। कलीसिया अगस्तिन को एक महान संत मानती है। संत मोनिका अपने पुत्र और अपने पति के मन फिराव के लिए प्रार्थना करते-करते खुद संत बन जाती हैं। इस तरह संत मोनिका की प्रार्थना से कलीसिया को दो महान संत मिल जाते हैं। यहाँ हम देखते हैं, कि संत मोनिका ने अपना दिल और मन खोलकर प्रतिदिन प्रभु येसु से प्रार्थना की और उन्हें उनका परिणाम मिला। ऐसे ही प्रार्थना के प्रभाव के बारे में हम आज मनन चिंतन करतें हैं।

जब हम प्रभु के जीवन पर मनन चिंतन करते हैं, तो हम देखते हैं कि प्रभु येसु कभी पहाड़ी पर और कभी निर्जन स्थान में एकान्त में पिता से प्रार्थना करते हैं । आज का सुसमाचार संत लुकस के अनुसार अध्याय 11 से लिया गया है, जहां प्रार्थना के बारे में खासकर जिक्र किया गया है । हम संत लुकस का सुसमाचार में 26 बार प्रार्थना के बारे में सुनते हैं। सुसमाचार में प्रभु येसु एक प्रार्थनामय जीवन जीते हैं और वह अपने प्रार्थनामय जीवन से लोगों को प्रभावित करते हैं। पिता ईश्वर से अपने मुक्तिदाई कार्यों के लिए प्रार्थना करते हैं। वह कभी-कभी रात भर पिता ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहते हैं। प्रभु येसु संत लुकस 8:26 में प्रार्थना कर गेरासा के अपदूत-ग्रस्त को चंगा करते हैं। संत मारकुस 5:21 में प्रार्थना करके वे जैरूस की बेटी को चंगाई प्रदान करते हैं और प्रभु येसु सुसमाचार में कई चमत्कार करते हैं । शिष्यगण प्रभु येसु के इस प्रार्थनामय जीवन और उनके कार्यों से प्रभावित होते हैं। इसलिए शिष्यगण प्रभु येसु से कहते हैं "प्रभु! हमें प्रार्थना करना सिखाइए।” इस पर प्रभु येसु उन्हें ’पिता हमारे’ प्रार्थना सिखातें हैं।

आज के सुसमाचार के दुसरे भाग में हम सुनतें हैं कि "माँगो और तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढो और तुम्हें मिल जाएगा; खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जाएगा।" प्रार्थना में इतनी शक्ति होती है, कि जो माँगता है, उसे दिया जाता है; जो ढूंढता है उसे उसे मिल जाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाता है। हमारे सामने प्रश्न उठता हैं। जब हम प्रार्थना करते हैं, क्या हम हमारे पूरे मन और लगन से प्रार्थना करते हैं ? क्या हम सिर्फ दिखावे के लिए प्रार्थना करते हैं? हमें जरा सोचने की जरूरत है और मनन चिंतन करने की जरूरत है कि मैं प्रार्थना कैसे करता हूँ।

आईए हम पवित्र बाइबिल से कुछ प्रार्थना के प्रभाव के उदाहरण पर मनन चिंतन करें। हम नबी दानियल के ग्रंथ अध्याय 3 में सुनते हैं कि राजा नबूकदनेजर, नबी दानियल और उनके साथी अनन्या, मीशाएल और अजर्या को कैसे प्रताड़ित करता है। राजा, नबी दानियल को सिंह के कुएं में डलवा देता है और उनके साथियों को जलती हुई भट्टी में डलवा देता है। लेकिन उन्हें कुछ नहीं होता है, क्योंकि ईश्वर उनके साथ था और उनकी प्रार्थना में शक्ति थी। इसलिए राजा उनकी प्रार्थनाओं और विश्वास से प्रभावित होकर उनको उनके राज्य के उच्च पद प्रदान करता है।

समुएल के पहले ग्रंथ अध्याय 1:9-18 में अन्ना पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अन्ना मंदिर में दुःखी होकर प्रभु से प्रार्थना करती थी और आंसू बहती हुई वह प्रतिज्ञा करती की, "विश्व मंडल के प्रभु! यदि तू अपने दासी की दयनीय दशा देखकर उसकी शुधि लेगा, यदि तू अपनी दासी को नहीं भुलाएगा और उसे पुत्र प्रदान करेगा, तो उसे जीवन भर के लिए प्रभु को अर्पित करूंगी" और वचन कहता है, "वह प्रभु के सामने अपना हृदय खोलकर प्रार्थना की।" इससे स्पष्ट होता है की जब तक हमारे मन को प्रभु के सामने नहीं खोलते हैं, उनके सामने अपना सर्वस्व अर्पित नहीं करते हैं। हमारी प्रार्थना पूरी नहीं होंगी। इसलिए हमें प्रभु येसु के सामने खुले हृदय से प्रार्थना करना है। और निर्गमन ग्रंथ 16: 1-36 में मूसा इस्त्राएली जनता के भोजन प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है। हम पढ़ते हैं की इस्राएलियों का सारा समुदाय मरुभूमि में मुसा और हारून के विरुद्ध भुनभुनाने लगता है। वे कहते हैं हम मिस्त्र में माँस की हड्डियों के सामने बैठते थे और हम यहां सब के सब मुखों मर रहे हैं। यह सुनकर मूसा ईश्वर से प्रार्थना करता है ईश्वर ने मूसा से कहा- "मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊंगा।" प्रिय भाइयों और बहनों प्रार्थना में इतनी शक्ति होती है कि जो भी माँगा जाता है प्रभु उनको प्रदान करता है।

नये विधान में हम प्रार्थना के प्रभाव के बारे में संत मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:21-24 में सुनते हैं सभागृह का जैरूस नामक एक अधिकारी प्रभु येसु के पास आया। प्रभु येसु को देखकर उसके चरणों पर गिर कर, वह अनुनय विनय करता रहा, मेरी बेटी मरने पर हैं। प्रभु येसु जैरूस की प्रार्थना को सुनकर उनकी पुत्री को चंगा करते हैं। । योहन के सुसमाचार अध्याय 5 में प्रभु येसु एक 38 वर्षों से बीमार व्यक्ति की प्रार्थना को जानकर उसे चंगा करता है। प्रभु येसु उनसे कहता है "क्या तुम अच्छा होना चाहते हो" उनकी अनुनय विनय पर प्रभु येसु उन्हें चंगा करते हैं। संत याकुब 5:16 में हम सुनते हैं "धर्मात्मा की प्रार्थना बहुत प्रभावशाली होती हैं।" हमें हमारे मन और दिल को निष्कलंक रखना है ताकि हमारी प्रार्थना भी प्रभावशाली हो, जो भी हम प्रार्थना करें, हमें पूरे लगन से प्रार्थना करें। और कई उदाहरण पवित्र बाइबिल में हम सुनते हैं जिनकी प्रार्थनाओं को प्रभु सुनता है। जो भी प्रभु येसु के सामने अपने निष्कलंक हृदय से जाता हैं। प्रभु येसु उनकी प्रार्थना को स्वीकार करता हैं। इसलिए हमें हमारे मन और हृदय को हमेशा साफ रखें ताकि हम प्रभु के सामने हमारी प्रार्थना और दूसरों की प्रार्थना को रख सके।

खीस्त में प्यारे भाइयों और बहनों हमारे सामने प्रश्न उठता है। क्या मैं निरंतर प्रभु येसु से प्रार्थना करता हूँ? क्या मैं अपना हृदय खोलकर सब कुछ अर्पित करता हूँ? क्योंकि वचन कहता है निरंतर प्रार्थना करनी चाहिए और कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। (लुकस 18: 1) क्योंकि जो कुछ हम प्रार्थना में माँगते हो, विश्वास करो कि वह तुम्हें मिल गया है। वह तुम्हें दिया जाएगा। (मारकुस 11:24) आईए हम कभी भी हिम्मत ना हारे, निरंतर प्रभु येसु के सामने अपनी प्रार्थना को रखें। वह अवश्य पूरा करेगा। ईश्वर हमें आशिष दे। आमेन !!!