Kapil Dev

चक्र- स – सामान्य काल का सोलहवाँ इतवार

उत्पति ग्रन्थ 18:1-10; कलोसियो 1:24-28; लूकस 10:38-42

ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)

ईश्वरीय दृष्टिकोण VS मानवीय दृष्टीकोण


ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाइयो और बहनो,

हम इस संसार की चीजों, वस्तुओं व बातों को कई दृष्टिकोणों से देखने की कोशिश करते हैं। उनमें से एक है मानवीय दृष्टिकोण और दूसरा ईश्वरीय दृष्टिकोण। मानवीय दृष्टिकोण सदा सुख-दु:ख व जिम्मेदारियों से भरा हुआ होता है। हर व्यक्ति अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी से निभाता है। कुछ लोग इन जिम्मेदारियों में पुर्ण रूप से इस तरह खो जाते हैं कि उन्हें दूसरों के कार्य कार्य ही नहीं लगते हैं। आज के पाठों के माध्यम से हमें कुछ ऐसा ही नज़ारा देखने को मिलता है। जो कार्य मनुष्य की दृष्टि में असम्भव है, वही कार्य ईश्वर की दृष्टि में सम्भव है। हमें आज के पाठों में ये दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं।

पहले पाठ में हम देखते हैं कि तीन लोग इब्राहीम को तंबू से दिखाई दिए। वह उन्हें अपने तम्बू ले आया और बड़ी उत्साह के साथ उनका अतिथि-सत्कार किया। प्रभु ने प्रसन्न होकर इब्राहीम और सारा को एक साल बाद एक बच्चा होने का आशीर्वाद दिया। इस पर सारा ने मुस्कुरा दिया। सारा के मुस्कुराने के दो कारण हो सकते हैं। पहला: वे दोनों बूढ़े हो चले थे। दूसरा: मनुष्य की दृष्टि से यह होना असंभव था। हम आगे वचनों में पढ़ते हैं कि सारा और इब्राहीम को एक वर्ष बाद एक पुत्र पैदा हुआ, क्योंकि ईश्वर की दृष्टि में यह कार्य संभव था।

हम सुसमाचार में देखते हैं कि दो बहनें प्रभु येसु के घर आने पर उनका आदर-सत्कार करती हैं। मरथा येसु के लिए भोजन-पानी की तैयारी करती है और मरियम उनके श्री चरणों में बैठ उनके वचनों को सुनती है।

मनुष्य की दृष्टि से: इसी बीच मरथा अपनी बहन मरियम को देख कुड़कुड़ाते हुए लुकस 10:40 में बोलती है, “प्रभु, क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि मेरी सहायता करे।” मरथा का यह कहना कुछ हद तक सही था। क्योंकि वह मरियम के सहयोग से प्रभु येसु के लिए जल्द ही भोजन की तैयारी करना चाहती थी।

ईश्वर की दृष्टि से: प्रभु येसु मरथा के प्रश्न का उत्तर बड़ी सहजता के साथ देते हैं। लुकस 10:41-42 में वचन कहता है, मरथा! मरथा! तुम बहुत सी बातों के विषय में चिंतित और व्यस्त हो; फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सबसे उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जाएगा। प्रभु येसु को शारीरिक भोजन से ज़्यादा आध्यात्मिक भोजन की भूख थी। योहन 4:34 में वचन कहता है, “जिसने मुझे भेजा है, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।” मत्ती 4:4 में प्रभु कहते हैं, “मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है”। इस प्रकार प्रभु के अनुसार उनका वचन भी भोजन है। यही भोजन अथार्त शब्द प्रभु येसु मरियम के साथ साझा करते हैं। यही कारण है कि प्रभु येसु मरथा से कहते है, मरियम ने उत्तम भाग चुना है और यह उस से नहीं लिया जाएगा।

हमें इसी प्रकार के कई विवरण बाइबिल में देखने को मिलते हैं, जिन्हें हम दो दृष्टिकोणों से देख सकते हैं। हम उत्पत्ति ग्रंथ में यूसुफ के बारे में सुनते हैं। मानवीय दृष्टिकोण से यूसुफ अपने अन्य भाइयों के लिए एक अभिशाप था, एक ऐसा काटा था जो उनको चुभता रहता था। परंतु ईश्वर के दृष्टिकोण से यूसुफ, उन भाइयों के लिए जिन्होंने उसे मार डालना चाहा, कुएं में डाला और आखरी में उसे मिदयानियों को बेच डाला, एक आशीर्वाद बना। उसी के कारण ही, उसके पिता याकूब और भाई-बहनों को सूखे के समय खाने को अनाज, पीने को पानी और रहने को जगह मिली।

हम प्रेरित-चरित में संत पौलुस के बारे में सुनते हैं। संत पौलुस मनपरिवर्तन के पहले माता कलीसिया पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार किया करते थे। वे माता कलीसिया के विरुद्ध एक कठोर दिल के व्यक्ति थे। जब येसु ने साऊल को दर्शन दिए तब वे पूर्ण रूप से बदल गए। उनका जीवन नवीन बन गया। जब साऊल प्रभु येसु के दर्शन पाने पर अंधे हो गए थे तब उन्हें एक व्यक्ति के पास ले जाया गया। उसने साऊल के बारे में मानवीय दृष्टिकोण से सोचते हुए प्रेरित-चरित 9:13 कहा, “प्रभु! मैने अनेक लोगों से सुना है कि इस व्यक्ति ने येरूसालेम में आपके सन्तों पर कितना अत्याचार किया है।” परन्तु ईश्वर की दृष्टिकोण से, साऊल का मनपरिवर्तन हो चुका था और प्रभु येसु की कृपा दृष्टि से उसी कलीसिया के लिये अत्याचार सहा और अपने प्राणों की आहुती दे दी।

हाँ, प्यारे भाइयो और बहनो, हमारे जीवन में भी ये दृष्टिकोण नजर आते हैं। परन्तु समझने की बात यह है कि हमारे लिए कौन-सा दृष्टिकोण अच्छा है। जो हमें एक आध्यात्मिक जीवन जीने में मदद करता है। आइए हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि प्रभु हमें इस संसार की चीजों, वस्तुओं व बातों को मानवीय दृष्टिकोण से नहीं बल्कि ईश्वरीय दृष्टिकोण से देखने की कृपा प्रदान करें। आमेन