Kapil Dev

चक्र- स – प्रभु-समर्पण का पर्व

मलआकी 3:1-4; इब्रानियो 2:14-18; लूकस 2: 22-40

ब्रदर कपिल देव (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


ख्रीस्त में मेरे प्रिय भाईयो और बहनो, आज माता कलीसिया प्रभु येसु के समर्पण का पर्व मनाती है। यह दिन साल के चलीसवें दिन 2 फ़रवरी को मनाया जाता है। यह कोई सामान्य अर्पण नहीं था, बल्कि ईश्वर के पुत्र का एक अद्भुत समर्पण था। हम मलआकी के ग्रन्थ 3:1 देखते हैं, "वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मन्दिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिसके लिए तुम तरसते हो, आ रहा है।” इस वचन की पूर्ति हम संत लूकस के सुसमाचार आध्याय 2 में पाते हैं, जहां बालक येसु को मंदिर लाया और चढाया जाता है।

हम देखते हैं कि जो लोग प्रभु को खोजते और उनके दर्शनों के लिए तरसते हैं, सर्वप्रथम उनका निष्कपट होना आवश्यक है। मत्ती 5:8 में वचन कहता है, "धन्य है वे, जिनका ह्रदय निर्मल है! वे ईश्वर के दर्शन करेगें।” जब बालक येसु को, मूसा के विधान के अनुसार मंदिर में अर्पण करने के लिए लाया गया, तब शायद मंदिर लोगों से भरा होगा। फ़िर भी वहां सिर्फ़ दो लोगों ने बालक येसु को प्रभु येसु ख्रीस्त के रूप में पहचाने पाते हैं, जो कि गैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति और प्रजा इस्राएल का गौरव है। ईश्वर के दर्शन का सौभाग्य, सिमेयोन और अन्ना को मिलता है, जो ईश्वर की प्रतीक्षा कई वर्षों से कर रहे थे। इससे उन्हें उनके जीवन में तृप्ति और संतुष्टि मिली। साथ ही साथ हम देखते हैं कि जो निष्कपट ह्रदय से ईश्वर के दर्शन प्राप्त करते हैं, वे चुपचाप नहीं रह पाते हैं। वे लोगों के समक्ष निडर हो कर इस बात की घोषणा करते हैं।

लोगों ने सिमेयोन व अन्ना के मुख से उस बालक मसीह के बारे सुना जिस मसीह की वे खुद सदियों से प्रतीक्षा कर रहे थे। परन्तु वे जानते हुए भी उस बालक मसीह को पहचान नहीं पाते हैं। इसका कारण है कि लोग एक ऐसे बालक की प्रतीक्षा नहीं कर रहे थे, जिसका जन्म गौशाले में हुआ हो, जिसके माता-पिता का गांव में एक छोटा व्यवसाय हो। परन्तु एक ऐसे मसीह का, जो एक राजा हो, शक्तिशाली हो, जो उन लोगों को रोमियों के चंगुल से छुडा सके और उन्हें, उनकी पत्नियों व बच्चों को दासता की जंजीरों से छुडा सके।

यहां हम देखते हैं कि लोग अपनी शारीरिक कमजोरियों और शारीरिक जरूरतों के अनुसार ही मसीह की प्रतीक्षा कर रहे थे। परन्तु मसीह उनकी शारीरिक कमजोरियों, शारीरिक जरूरतों, और शारीरिक दासताओं से ही नहीं, बल्कि उनकी पाप की दासता से छुडाने, आध्यत्मिक कमजोरियों से छुडाने और उन्हें अनन्त जीवन देने के लिए इस दुनिया में आये।

प्रिय भाईयो और बहनो, ऐसा ही अक्सर हमारे साथ होता है। प्रभु अनेक रूपों में हमारे समाने आते हैं, हम उनके दर्शन भी करते हैं, मगर हम उन्हें पहचानने में भ्रमित होते हैं। हम भी ईश्वर को अपनी ज़रूरतों और आवश्यकता के अनुसार ही खोजते रहते हैं। स्त्रोत 23:1 में वचन कहता है, "प्रभु मेरा चरवाहा है, मुझे किसी बात की कमी नहीं है।" हमें प्रभु ईश्वर को निष्कपट हृदय से खोजना चाहिए। और सबसे अहम बात यह है कि हमें प्रभु ईश्वर को जानते हुए सिमेयोन और अन्ना की तरह पहचानना आना चाहिए जिससे हम उन अवसरों को न गवां दे जिसे ईश्वर ने खुद हमें उसके दर्शन के लिए दिया है। आइये, हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि ईश्वर ऐसे मौकों को हमें पहचानने में मदद करें और उसके आशीर्वाद से स्वर्गराज्य जाने योग्य बन सकें।