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चक्र- अ – जनवरी 1- ईशमाता मरियम का महापर्व

गणना ग्रन्थ 6:22-27; गलातियों 4:4-7; लूकस 2:16-21

ब्रदर अमित भूरिया, (झाबुआ धर्मप्रान्त)


मैं प्रभु की दासी हूँ आपका कथन मुझ में पुरा हो। प्रिय भाइयो और बहनो, माता कलीसिया आज ईशमाता मरियम का महापर्व मना रही है। हमारे लिए यह माता मरियम के जीवन पर मन चिंतन करने के लिए एक अच्छा अवसर है। आज कलीसिया सभी विश्वासियों को आमंत्रित करती है कि हम माता मरियम के निष्कलंक व पवित्र जीवन पर दृष्टि डालें और उसके जीवन के द्वारा प्रेरणा लें।

हम जानते हैं, कि माँ मरियम को स्वर्गदत गाब्रिएल के माध्यम से ईश्वर का संदेश प्राप्त हुआ। और माँ मरियम ने ईश्वर के प्रस्ताव को “मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका कथन मुझ में ही पूरा हो जाए” कहते हुए स्वीकार किया। इन शब्दों के द्वारा माँ मरियम ईश्वर की माँ बनने के लिए हाँ करती है। वह ईश्वर के उद्धार-कार्य में अपनी विशेष भूमिका निभाने के लिए तत्पर हो जाती है। मरियम ने अपने जीवन काल में ईश्वर के प्रति पूर्ण निष्ठा तथा प्रेम से अपनी जिम्मेदारी को निभाया।

हम जानते हैं कि जब समाज में कोई कुँवारी लड़की विवाह से पहले ही गर्भ धारण कर लेती है, तो समाज के लोग कैसे-कैसे सवाल करने लग जाते हैं। कई बार वे उस पर आरोप लगाते हैं, तथा अपने समाज से निष्कासित भी कर देते हैं क्योंकि यह समाज के विरुद्ध है कि कोई विवाह से पूर्व गर्भ धारण कर ले। यह समाज के नियमानुसार नहीं है। हम इसी बात को ध्यान में रखते हुए माँ मरियम की परिस्थिति को गहराई से समझ सकते हैं, उस वक्त माँ मरियम के लिए भी यह सब सहना व स्वीकार करना कितना कठिन रहा होगा। लेकिन ईश्वर के वचन की पूर्ति करना उसे स्वीकार्य रहा।

परम्परा के अनुसार मरियम को बचपन में ही प्रभु के मंदिर में समर्पित किया गया था, अर्थात माँ मरियम में भी समर्पण की भावना कुट-कूट कर भरी थी। इसलिए माँ मरियम ईश्वर पर भरोसा रखते हुए उसकी पवित्र माँ बनने के लिए तैयार हो जाती है। ईश्वर के उद्धार-कार्य में तन मन और हृदय के साथ इस संपूर्ण भागीदारी को मरियम में सबसे खूबसूरती से प्रकट किया गया है। उन्हें न केवल मानव जीवन देने के लिए येसु की माँ के रूप में चुना गया, बल्कि उसके मातृत्व के माध्यम से उन्हें मुक्ति के रहस्य में शामिल किया गया और उसने सर्वशक्तिमान सर्वोच्च ईश्वर को अपने पवित्र गर्भ में धारण किया। इसका आशय है मरियम की सक्रिय भूमिका बनाए बिना, न तो येसु का जन्म हुआ होता और न संसार की मुक्ति हो सकती थी। पुराने विधान के निर्गमन ग्रंथ 3:7 में हम पढ़ते हैं, “प्रभु ने कहा, मैंने मिस्र में रहने वाली अपनी प्रजा की दयनीय दशा देखी और अत्याचारों से मुक्ति के लिए उसकी पुकार सुनी है। मैं उसका दुःख अच्छी तरह जानता हूँ।

प्रभु ईश्वर अपने लोगों को बचाने के लिए और अपने इस कार्य को पूरा करने के लिए वह मूसा को चुनता है। वह मूसा से कहता है, 'तुम मेरी प्रजा इस्राएल को मिस्र देश से बाहर निकाल लाओ।" (निर्गमन गन्थ 3:10) मूसा प्रभु की इच्छा व योजना को पूरा करने के लिए तैयार हो जाता है और अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी से निभाते हुए मिस्र की गुलामी से इस्राएलियों को स्वतंत्र करवाता है और इस प्रकार मूसा प्रभु की दृष्टि में महान सेवक सिद्ध होता है। उसी प्रकार प्रभु ने अपनी योजना के तहत मां मरियम को चुना और वह अपने कर्तव्य को पूरा करती है।

ईश्वर सभी मनुष्यो के सृष्टिकर्त्ता है। ईश्वर ने ही माँ मरियम की भी सृष्टि की। हम त्रियेक ईश्वर पर विश्वास करते हैं। अपनी योजना के अनुसार प्रभु ईश्वर मनुष्य बन कर इस दुनिया में आना चाहते थे। मनुष्य बनने के लिए उन्हें एक स्त्री से जन्म लेना पड़ा। इस महान कार्य के लिए उसने नाज़रत की एक बालिका को चुना ताकि वह ईश्वर को अपने गर्भ में धारण करें। इस प्रकार ईश्वर का पुत्र येसु ख्रीस्त मरियम से जन्म लेता है। मरियम का पुत्र येसु सच्चा ईश्वर है। इसलिए, हम मरियम को येसु की माता कह कर उसका आदर करते हैं।

प्रभु येसु के पालन-पोषण से लेकर उसके दुख भोग मृत्यु और पुनरुत्थान तक मरियम येसु की लगातार सहायक रही। इस प्रकार वह संसार की सभी माताओं के लिए भी आदर्श माता बनी हैं। मरियम से हम निःस्वार्थ भाव से अपने बच्चों की भलाई के लिए समर्पित जीवन बिताना सीखते हैं, तथा उन्हें धर्म, विश्वास और नीति का पाठ पढ़ाना सीख लेते हैं। हम मरियम की सहायता से अपने बच्चों के मिशन की पूर्ति में सहायक बनते हैं। हम भी माँ मरियम की तरह ईश्वर की योजनाओं को पहचानते हुए अपने सभी कार्यों को व जिम्मेदारियों को निभाने के लिए हमेशा तत्पर रहें। छोटे-बड़े बच्चे, सभी अधिकारी, राजनेता, पुरोहित, सभी अपनी बुलाहट के अनुसार अपने सभी कार्यों को पूरा करें। आज हम सभी माता मरियम, ईश्वर की माँ का पर्व मना रहे हैं। हम मरियम के समर्पित जीवन से प्रेरणा लेते हुए, माँ मरियम को हमारी भी माता मानें क्योंकि मरियम केवल येसु की माता नहीं, कलीसिया की भी माता हैं।

आज के सुसमाचार में हम सुनते हैं कि मरियम ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा और वह इन पर विचार किया करती थी । (सन्त लूकस 2:19) उसने ईश-वचनों को सुनकर उन्हें अपने मन में संजोए रखा तथा उन वचनों पर ध्यान देते हुए उनका अनुकरण किया। ईश- वचनों के अनुसार उसने अपना जीवन बिताया और मातृत्व की सारी जिम्मेदारियों को भली-भांति निभाया। इसी तरह हम सभी को भी मां मरियम के समान अपना जीवन बिताना चाहिए और उसके जीवन से प्रेरणादायक गुणों को लेते हुए अपने सारे कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। जिस तरह मरियम के गर्भ से ईश्वर का प्रेम हमारे पास आता हैं, उसी तरह प्रभु येसु का प्रेम हमारे द्वारा लोगों के लिए प्रकट होना चाहिए। गणना ग्रन्थ 6:24 में लिखा है प्रभु तुम लोगों को आशीर्वाद प्रदान करें और सुरक्षित रखें। प्रभु ने सारी मानव जाति के लिए माँ मरियम को एक आशीर्वाद के रूप में प्रदान किया, और उसके पवित्र छाया में हमें सुरक्षित रखा। तो आइए, हम प्रभु की माता को धन्य कहें और उसकी शरण लें। आमेन ।