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चक्र- अ – प्रभु प्रकाश का महापर्व

इसायाह 60:1-6; एफेसियों 3:2-3,5-6; मत्ती 2:1-12

ब्रदर: अजित अ. (भोपाल महाधर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्यारे विश्वासीगण!

हम सब अपने जीवन में प्रकाश के महत्व को भलि-भाँति जानते हैं। ज्यादातर जब हम अंधकार में रहते हैं तब हमें प्रकाश के महत्व के बारे में पता चलता है। इसलिए ईश्वर ने सबसे पहले रोशनी की सृष्टि की जिस के बारे में हम उत्पत्ति ग्रंथ 1:2-4 में पढ़ते हैं कि आरंभ में पृथ्वी उजाड़ और सुनसान थी और अंधकार छाया हुआ था; तब ईश्वर ने कहा ’प्रकाश हो जाए’ और प्रकाश हो गया। ईश्वर को प्रकाश अच्छा लगा और उसने प्रकाश और अंधकार को अलग कर दिया। ईश्वर का एकमात्र मकसद था कि मनुष्य ज्योतिर्मय जीवन जीयें। लेकिन मनुष्य अपने पापों के कारण ईश्वर से दूर हो गया और ज्योति के मार्ग से भटक गया।

फिर भी ईश्वर उन भटके हुए लोगों को ज्योतिर्मय राह पर ले आने के लिए नबियों और राजाओं द्वारा कोशिश करता रहा। फिर भी लोगों ने अंधकारमय जीवन जीना पसंद किया। इसलिए ईश्वर ने उस अंधकार को दूर करने के लिए और लोगों को पापों से मुक्त करने के लिए अपने एकलौते पुत्र को एक ज्योति के रूप में भेजा। इसी को हम इब्रानियों के पत्र 1:1 में पढ़ते हैं कि “प्राचीन काल में ईश्वर बारंबार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था अब अंत में वह हमसे पुत्र द्वारा बोला है।” संत योहन भी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ”उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था“ (योहन 1: 4)।

प्रभु प्रकाश का महापर्व इसी प्रकाश को सारी मानव जाती के लिए प्रकट करता है। इसलिए आज के तीनों पाठ हमें एक ज्योतिर्मय जीवन जीने के लिए आह्वान करते हैं। येसु योहन रचित सुसमाचार 8:12 में कहते हैं कि “संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है वह अंधकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी”। इसी के द्वारा प्रभु येसु हर एक विश्वासी को ज्योति बनने के लिए बुलाते हैं। वह ज्योति हमें तब प्राप्त होती है जब हम प्रभु येसु को अपनाते हैं।

इसी को नबी इसायाह आज के पहले पाठ में सुन्दर रूप से बताते हैं कि यदि तुम प्रभु ईश्वर की महिमा और ज्योति से परिपूरित हो, तो समुद्र की सम्पत्ति और राष्ट्रों का धन तुम्हारे पास आ जाएगा और सभी राष्ट्र और राजा तेरे उदयमान प्रकाश को देखने आएँगे क्योंकि तुम जिस ज्योति और महिमा से भरे हुए हो वो सबसे शक्तिशाली है। यदि हम उस ज्योति को ग्रहण करते हैं तो हममें प्रभु येसु का वचन मत्ति 5:14 लागू होगा जहाँ वे कहते हैं “तुम संसार की ज्योति हो। पहाड़ पर बसा हुआ नगर छिप नहीं सकता।” इसलिए प्रिय विश्वासीयों ज्योति को स्वीकार करने का मतलब, प्रभु येसु को अपने जीवन में स्वीकार करना है। यदि प्रभु हममें निवास करते हैं तो हम अपना पूरा जीवन ईश्वर की महिमा के लिए जियेंगे। इसका सबसे उत्तम उदाहरण हैं- संत पौलुस जो पहले अत्याचारी था और अंधकार में जी रहा था लेकिन जब से उसने प्रभु येसु की ज्योति को पाया और अपने जीवन में उस ज्योति को अपनाया तब से वह दूसरों के लिए ज्योतिर्मय मार्ग बन गया और ईश्वर की महिमा के लिए कार्य करने लगा। वह शक्तिमय ज्योति, पौलुस को यह कहने के लिए प्रेरित किया कि मैं अब जीवित नहीं रहा बल्कि मसीह मुझ में जीवित है (गलातियों 2:20)। इसी को व्यक्त करते हुए आज के दूसरे पाठ में एफेसियों के पत्र 3:2 में पौलुस कहता है, “ईश्वर ने लोगों की भलाई के लिए मुझे अपनी कृपा का सेवा-कार्य सौंपा है”।

प्रभु येसु एक ज्योति बन कर सबकी मुक्ति के लिए आये। इसलिए आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि तीन ज्योतिषी भेंट लेकर उस ज्योति का स्वागत करने आए। हमें भी विश्वासी होने के नाते उस ज्योति को अपने जीवन में प्राप्त करने के लिए तत्पर रहना हैं। क्योंकि येसु कहते है कि “तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारी स्वर्गीक पिता की महिमा करे” (मत्ती 5:16)। लेकिन हममें से अधिकत्तर लोग प्रभु येसु को अपने जीवन में लाने के लिए प्रयत्न नहीं करते हैं क्योंकि उस ज्योति को पाने के लिए हमें बहुत सारे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे- अपनी बुरी इच्छाओं तथा वासनाओं को त्यागना और अपने पुराने जीवन को पूरी तरह से बदलकर एक नया इंसान बनना, जैसे संत पौलुस के जीवन में हुआ था। लेकिन हम अपने जीवन में बदलाव लाने से डरते हैं। इसलिए हम ज्यादातर ईश्वर की आराधना करने में ही खुश हो जाते हैं लेकिन प्रभु को अपने जीवन में धारण कर आगे बढ़ने में आसमर्थ हो जाते हैं।

तो प्रिय विश्वासियों आइए इस वक्त हम ईश्वर से यह याचना करें कि ईश्वर अपनी कृपा एंव शक्ति से हमें भर दे, ताकि हम उस प्रभु येसु को जो सच्ची ज्योति हैं, अपने जीवन में किसी भी कीमत पर स्वागत कर सकें और हम भी दूसरों के लिए ज्योति बन कर ईश्वर की महिमा के लिए कार्य कर सकें। आमेन।।