इसायाह 62:1-5; प्रेरित-चरित 13:16-17, 22-25; मती 1: 18-25
आज की जागरण मिस्सा में माता कलीसिया हमारे समक्ष प्रभु येसु के जन्म का वर्णन प्रस्तुत करती है। यह वर्णन दर्शाता है कि प्रभु ईश्वर की योजनाएं मानवीय सोच के परे हैं। मानवीय मस्तिष्क इनको आसानी से समझ नहीं सकता है। इस हेतु ईश्वर की विशेष कृपा का होना अनिवार्य है। आज के तीनों पाठों में हमें येसु के जन्म से जुड़ी जानकारीयाँ प्राप्त होती है। पहले पाठ में नबी इसायाह इस्राएल के उद्धार की भविष्यवाणी करते हैं। वे इस्राएली जनता को आश्वासित करते हुए कहते हैं कि ईश्वर शीघ्र ही उनकी सुधी लेगा। तथा दूसरे पाठ में हम संत पौलुस के पहले भाषण का एक अंश सुनते हैं जिसमें संत पौलुस यहूदियों को येसु में विश्वास करने हेतु आग्रह करते हैं।
आज का सुसमाचार यह दर्शाता है कि येसु का जन्म एक पूर्व-निर्धारित योजना के अनुसार हुआ। हम येसु के जन्म के संदेश में पाते हैं कि स्वर्गदूत पुराने विधान में की गई भविष्यवाणी का उल्लेख करता है जिसका प्रमाण हमें नबी इसायाह के ग्रंथ 7:14 में मिलता है, जहां लिखा है एक कुंवारी गर्भवती होगी एवं पुत्र प्रसव करेगी और वह उसका नाम एम्मानुएल रखेगी। इसी का उल्लेख स्वर्गदूत अपने संदेश में करते है। यह इस बात को दर्शाता है कि येसु के जन्म की योजना पिता ईश्वर ने सदियों पूर्व बनाई थी एवं ईश्वर ने नबियों द्वारा इसकी भविष्यवाणी की थी, तथा अब उस भविष्यवाणी के पूरा होने का समय आ गया है। यही बात येसु के जन्म को असाधारण बनाती है कि येसु के जन्म का उल्लेख लगभग 700 वर्षों पूर्व हुआ था। इस प्रकार का वर्णन हमें किसी अन्य व्यक्ति के जन्म में प्राप्त नहीं होता है। इसीलिए यह कोई साधारण घटना नहीं है यह ईश्वरीय कार्य है। यह घटना ईश्वर के सामर्थ्य को प्रकट करती है। इसलिए ईश्वर के कार्यों को देखते हुए स्तोत्रकार स्तोत्र 33 में कहता है कि ईश्वर की अपनी योजनाएं चिरस्थायी हैं एवं उसके अपने उद्देश्य पीढ़ी दर पीढ़ी बने रहते हैं। ईश्वर के कार्य मानवीय सोच से परे है। इसी कारण यूसुफ मरियम के गर्भधारण को नहीं समझ पाया था।
आज का सुसमाचार एवं दूसरा पाठ इस बात को भी व्यक्त करते हैं कि येसु दाऊद के पुत्र है। संत मत्ती रचित सुसमाचार इस बात को विशेष महत्व देता है कि येसु दाऊद का पुत्र है। इसलिए संत मत्ती अपने सुसमाचार की शुरुआत यह कहते हुए करते हैं “इब्राहीम की संतान, दाऊद के पुत्र ईसा मसीह की वंशावली”। सुसमाचार में विभिन्न जगहों पर हम पाते हैं कि लोग येसु को दाऊद के पुत्र कहकर सम्बोधित करते है। पर सवाल यह है कि येसु किस प्रकार दाऊद के पुत्र कहला सकते हैं? इसका जवाब हमें पुराने विधान में प्राप्त होता है। 2 समुएल 7:12-13 में इस बात का उल्लेख है कि ईश्वर ने राजा दाऊद से यह प्रतिज्ञा की थी कि उसका सिंहासन सदा बना रहेगा, एवं उसके राज्य का कभी अंत नहीं होगा। दाऊद से की गई प्रतिज्ञा को ईश्वर येसु के जन्म द्वारा पूरी कर देते है। इसलिए संत पौलुस अपने पहले भाषण में यह कहते हैं कि ईश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दाऊद के वंश में इस्राएल के लिए एक मुक्तिदाता अर्थात येसु को उत्पन्न किया। इसलिए ईश्वर यूसुफ को चुनते हैं कि वह दाऊद के वंश में जन्म लिए थे। इस प्रकार यूसुफ के द्वारा प्रभु येसु को दाऊद का पुत्र कहलाने का आधार प्राप्त होता है।
आज के पाठ हमें ईश्वर पर पूर्ण भरोसा बनाये रखने का आहवान करते है। इस्राएली अपने पापों के कारण ईश्वर के द्वारा त्याग दिए गए थे। इसके चलते उन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। इस कारण उनका विश्वास कमजोर हो गया था। परंतु नबी अपनी भविष्यवाणी से उनके विश्वास को मजबूती प्रदान करते हैं। सुसमाचार में हम यूसुफ के भरोसे के बारे में सुनते हैं। यह आसान नहीं था कि वह स्वप्न में की गई बात पर विश्वास करें। फिर भी यूसुफ ईश्वर पर दृढ़ भरोसा रखते हुए स्वर्गदूत के वचनों का पालन करता है, एवं मरियम का पूरा-पूरा साथ देता है। यह घटना हमें विषम परिस्थितियों में भी अपने विश्वास में मजबूत बने रहने हेतु प्रोत्साहित करती है।
आज के पाठ इस बात को इंगित करते है कि ईश्वर एक सत्यप्रतिज्ञ ईश्वर है। वह अपने किए हुए वादों को जरूर पूर्ण करता है। ईश्वर ने पुराने विधान में एक मुक्तिदाता की प्रतिज्ञा की थी। इसी प्रतिज्ञा को वे येसु के जन्म के द्वारा पूरी कर देते है। इसीलिए स्तोत्रकार स्तोत्र 119 में कहता है, “प्रभु तेरी प्रतिज्ञा सदा सर्वदा बनी रहती है। वह आकाश की तरह चिरस्थायी है।“ ईश्वर सदा सर्वदा सत्यप्रतिज्ञ बना रहता है, इसलिए हमें उसके वचनों पर विश्वास करना चाहिए। क्योंकि ईश्वर असंभव को भी संभव कर सकते हैं।
येसु का जन्म ईश्वर के प्रेम को व्यक्त करता है। यह इस बात को दर्शाता है कि ईश्वर मनुष्य को कितना प्यार करता है। इसके संबंध में योहन 3:16 कहता है, “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उनके लिए अपने इकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया। यही है ईश्वर के अपार प्रेम का प्रमाण। यह यही दर्शाता है कि ईश्वर मानव के हित के लिए कार्य करता है। वह उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ता है, वरन ईश्वर स्वयं मनुष्यों की खोज में आता है। ईश्वर प्रारंभ से ही मनुष्यों के साथ अटूट संबंध स्थापित करना चाहता था। इसीलिए वह मनुष्य रूप धारण कर जन्म लेते हैं। स्वर्गदूत भी अपने संदेश में कहता है कि उसका नाम एम्मानुएल होगा जिसका अर्थ है ईश्वर हमारे साथ है। येसु ने अपने जन्म से मनुष्य एवं ईश्वर के बीच के फासले को खत्म कर दिया। इस जागरण मिस्सा के दौरान हम ईश्वर के असीम प्रेम पर मनन चिंतन करें, एवं ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को मजबूत करें। हम ईश्वर के प्यार को अनुभव कर उसी प्यार को एक दूसरे के साथ बांटे। एवं यूसुफ की तरह आज्ञाकारी बनकर ईश्वर की योजना में अपनी सहभागिता प्रदान करें। आप सभी को ख्रीस्त जयंती की हार्दक शुभकामनाएं! आमेन।