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धन्य कुँवारी मरियम का उद्ग्रहण का महापर्व

यूदित 13:18-20,15:9 गला. 5:1,13-17 लूकस 1:46-55

ब्रदर सुरेन्द्र कुमरे (जबलपूर धर्मप्रान्त)


मनुष्य एक भावनात्मक प्राणी है और उसका जीवन बहुत प्रकार की भावनाओं से भरा होता है, जिनमें से एक है खुश होना। जब मनुष्य खुश होता है तो वह उसे कई तरह से इजहार करता है। कुछ लोग हँसकर इसका इजहार करते हैं तो कुछ लोग आंसू बहा कर भी खुशी का इजहार करते हैं (जिसे हम खुशी के आंसू कहते हैं) और कुछ लोग गीत गाकर खुशी का इजहार करते हैं। यदि हम पवित्र बाइबल को खोलेंगे और पढ़ेंगे तो कुछ ऐसे लोगों को हम पाते हैं जो गीत गाकर ईश्वर के प्रति अपनी खुशी को प्रकट करते हैं। समूएल का पहला ग्रंथ अध्याय 2:1-10 में समूएल के जन्म की खुशी मैं उसकी माँ, अन्ना गीत गाकर प्रभु का गुणगान करती है क्योंकि अन्ना बांझ थी और उसकी कोई संतान नही थी। परंतु वह ईश्वर की कृपा दृष्टि से एक पुत्र को जन्म देती है और इसलिए वह खुशी से गीत गाकर ईश्वर का गुणगान करती है। यूदीत के ग्रंथ में भी हम पढ़ते हैं कि जब असुर की सेना इस्राएलियों पर आक्रमण करने वाली थी तब प्रभु ईश्वर एक नारी, यूदीत के द्वारा इस्राएलियों विजय दिलाता है। यूदीत अपने शत्रु के सेनाध्यक्ष का सिर काट लेती है और इस्राएली लोगों को दिखाती है कि प्रभु की महती कृपा उन पर है और तब वे विजय का जश्न मनाते हैं। उस समय यूदीत प्रभु के लिए गीत गाती है, वे ऊँचे स्वरों में प्रभु का स्तुतिगान करते हैं। (यूदीत16:1-17)

आज के पवित्र सुसमाचार में माता मरियम के भजन के बारे में बताया गया है। इसे समझने के लिए यदि हम मरियम और एलिजाबेथ के मिलन के पाठ को पढ़ेंगे तो सुसमाचार कहता है कि इस घटना में दोनों स्त्रियाँ खुशी का अनुभव कर रहीं थीं। यहाँ एलिजाबेथ अपने आप को सौभाग्यशाली मानती है। वह मरियम को धन्य कहती है कि वह प्रभु की माता है और वह चुनी गई है। इस पर मरियम एल्काना की पत्नी अन्ना के समान भजन गाकर ईश्वर का गुणगान करती है। यह एक मानवीय प्रवृत्ति है जब कोई दूसरा व्यक्ति हमारे कार्यों की प्रशंसा करता है या हमारे महान कार्यों को हमें बतलाता है और जब हमें उसका अनुभव होता है तो हम अपने आप को कृतज्ञ मानते हैं और उस ईश्वर को जो हमारे जीवन को अनुपम कृपाओं से भर देता है हम बार-बार धन्यवाद देते हैं और गीत गा कर भी अपनी खुशी को प्रकट करते हैं। ऐसी ही कुछ भावनाओं के साथ माता मरियम को भी खुशी होती है और वह भी ऊँचे स्वर में, गीत गा कर प्रभु का गुणगान करती है।

ख्रीस्त में प्यारे भाईयो एवं बहनो, जीवन में खुश रहने के लिए किस चीज की आवश्यकता है? नबी यिरमियाह के ग्रन्थ 31:3 में वचन कहता है मैं अनन्तकाल से तुमको प्यार करते आ रहा हूँ, इसलिए मेरी कृपादृष्टि बनी रहती है। जी हाँ, जीवन में खुश रहने के लिए ईश्वरीय कृपा का होना अति आवश्यक है। यदि ईश्वरीय कृपा नहीं है तो हम खुश नहीं रह सकते क्योंकि आज के पवित्र सुसमाचार में माता मरियम कहती है कि उसने अपनी दिन दासी पर कृपादृष्टि की है। लुकस रचित सुसमाचार 1:57 में हम देखते हैं कि ईश्वर की कृपादृष्टि एलिजाबेथ पर भी बनी रही जिसके फलस्वरूप उसे बुढ़ापे में भी संतान की प्राप्ती होती है और वह अपने जीवन में ईश्वरीय खुशी को अनुभव करती है। सिमेयोन और अन्ना के जीवन में भी ईश्वर की कृपादृष्टि बनी रही। इसलिए वे मुक्तिदाता को पाकर खुशी से ईश्वर का स्तुति गान करते हैं। अर्थात हमें ईश्वरीय कृपा में निरंतर बने रहना चाहिए। क्योंकि वचन कहता है मेरी कृपा तेरे लिए काफी है (2 कुरि. 12:9)। मतलब ईश्वर की कृपा से ही हम अपने जीवन में खुशी तथा उद्वार पा सकते हैं, जिस तरह माता मरियम हर समय प्रभु में प्रसन्न रहती थी तथा ईश्वरीय कृपा में जीती थी। उसने ईश्वर की योजना को प्रसन्नता से ग्रहण किया और खुशी से उस योजना को पूरा भी किया। यही कारण है कि वह ईश्वर के योग्य पाई गई और ईश्वर की कृपापात्री बन गई। इसलिए माता मरियम सह-शरीर इस दुनिया से स्वर्ग में उठा ली गई और उन्होंने सम्मान का मुकूट प्राप्त किया। तो आइए हम अपने जीवन के हर परिस्थितियों में खुश रहें और ईश्वरीय कृपा में जीवन जिए जिससे हम भी एक दिन माता मरियम के सामान पुरूस्कार के भागी बन सकें।